पंचाक्षरेण मंत्रेण पत्रं पुष्पमथापि वा
य: प्रयच्छति शर्वाय तदनंतफलं सकृत
पांच अक्षरों के मंत्र अर्थात 'om नम: शिवायÓ का जाप करना तथा इस मंत्र के द्वारा जो भ मनुष्य पत्र-पुष्प
और जल इत्यादि का समर्पण देवासुरेश्वर भगवान शंकर को एक बार भी करता है, तो वह अनंत फल पाता है।
भगवान आदि अनंत शिव शंकर के मुखारविंद से सात करोड़ मंत्र निकले, परंतु वे सभी मंत्र मिलकर भी इस पंचाक्षरी मंत्र की सोलहवीं
कला के समान भी नहीं होते हैं। विधि-विधान से दीक्षित हो अथवा अदीक्षित हो, कैसा भी क्यों न हो,
मनुष्य मात्र तो क्या, जो भी प्राणी इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप किया करता है, वह अवश्य ही भगवान
शंकर का भक्त हो जाया करता है। घोर पापी भी पापों से तुरंत ही मुक्त हो जाया करता है, इसमें जरा
भी संदेह नहीं है। समस्त लोकों व सृष्टियों तथा तीनों भुवनों में
इस पांच अक्षरों वाले मंत्र से अधिक कुछ
भी श्रेय नहीं है। पंचाक्षरी मंत्र के द्वारा बिल्व के पत्तों से जो
मनुष्य भगवान शिव का पूजन करता है,
वह ईश्वरीय पद को प्राप्त करता है।
शिव पूजा से पाएं कष्टों से मुक्ति व मोक्ष रोग शांति के लिए : उड़द से शिवलिंग का पूजन करने से रोग की शांति होती है। विधिपूर्वक पूजन
व मंत्रों से शिवलिंग का ढाई-ढाई घटी बिना धारा तोड़े अभिषेक करने से असाध्य से असाध्य रोगों
में भी लाभ होता है। यह पूजन तब तक जारी रहे जब तक शिवजी के सहस्र नामों का जप पूर्ण नहीं हो जाता।
संतान सुख के लिए : शिवलिंग की सहस्रनामों से , नाना प्रकार के शुभ द्रव्यों से पूजा करने तथा मंत्रों
से घी की धारा से अभिषेक करने पर संतान सुख मिलता है। अभिषेक तब तक करते रहें जब तक नामों
का जप पूर्ण नहीं हो जाता।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए : नाना प्रकार की सामग्रियों से शिवजी की पूजा करने तथा बिल्वपत्रों
को पंचाक्षरी मंत्र का उच्चारण करते हुए एक लाख की संख्या में चढ़ाएं। इच्छापूर्ति होगी।
शत्रु नाश के लिए : राई के पुष्पों से शिवजी का पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है। शत्रुओं को
मृत्युतुल्य कष्ट होता है। राई के पुष्पों से पूजन के साथ सरसों के तेल की धारा से शिवलिंग का
अभिषेक करने से शत्रु नष्ट होते हैं, किंतु सावधान, बिना गुरु या पंडित के यह पूजन पूजनकर्ता के
लिए प्राणघातक हो सकता है।
मोक्ष के लिए : अगस्त्य के एक लाख फूलों से पूजन व तुलसी पत्रों से पूजन तथा तिल के पुष्पों से
विशेष पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दिव्य गंधों से पूजन
जो मनुष्य शिवलिंग का पूजन दिव्य गंधों से करता है, वह सौ करोड़ दिव्य वर्षों तक भगवान के
लोक शिवलोक में निवास करता है। चंदन के लेपन से किसी अन्य सुगंधित पदार्थ के लेपन से
दोगुना फल प्राप्त होता है। चंदन से भी अधिक गुणा पुण्य फल अगरू के लेपन से प्राप्त होता है।
अगरू से भी अधिक सौगुणा पुण्य फल कुमकुम के लेपन से मिलता है। चंदन, अगरू, कपूर, नाभिरोचन,
कुमकुम इन सबसे जो शिवलिंग का विलेपन करता है उसे गाणपत्य पद की प्राप्ति होती है।
जो मनुष्य भगवान शिव के लिए विधिपूर्वक जो भी अर्पण करता है, वह करोड़ों वर्षों तक भगवान
शिव के लोक शिवपुर में निवास करता है।
किस फूल के चढ़ाने से मिलेगा लाख गुणा फल आक के फूलों से की गई पूजा श्रेष्ठ मानी जाती है। सौ करवीर के फूलों सं अधिक श्रेष्ठ बिल्वपत्र
माना गया है। एक सौ बिल्वपत्र से श्रेष्ठ कुश और सौ कुश से भी श्रेष्ठ शमी के फूल माने गए हैं।
धतूरे के फूल भी श्रेष्ठ माने गए हैं। इनसे भगवान शिव का जो प्राणी भक्तियुक्त विधि-विधान से
पूजन करता है, वह करोड़ों कल्पों तक शिवपुर में निवास करता है।
न चढ़ाएं ऐसे फूल
शिव पूजा बंधूक की तरह का फूल, कुंद, केतकी, यूथिका, मदंतिका, शिरीष और अर्जुन के पुष्पों
से भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए। यह फूल पूजा में वर्जित माने गए हैं।
शिवलिंग पर चढ़ाए गए अलग-अलग वृक्षों के फूल एक प्रहर से लेकर चार पहर तक ठहरता है,
जो फूल केश और कीटों से युक्त हों, पदुर्षित हो तथा स्वयं ही गिर हुए हों उनका त्याग कर देना चाहिए।
किसी भी वृक्ष की कलियों से शिव का पूजन नहीं करना चाहिए। यदि फूलों का लाभ न हो, तो ऐ
सी दशा में पत्रों को भगवान शिव के लिए निवेदित करना चाहिए।
चार कोस तक स्वायंभुव शिवलिंग क्षेत्र
देवों के देव भगवान शिव की महिमा समस्त भवुनों में फैली है। प्रभु अपने भक्तों को दुलभ वर प्रदान
करते हैं। शिवालय के चारों ओर एक कोस तक शिव का ही क्षेत्र माना जाता है। यदि इस क्षेत्र में देहधारी
प्राण त्यागते हैं या उनकी मृत्यु होती है, तो वह शिवलोक को जाते हैं। मनुष्यों द्वारा स्थापित शिवलिंग
अर्थात शिवालय के चारों ओर एक कोस तक शिव का क्षेत्र बतलाया गया है। जिस क्षेत्र में स्वायंभुव
शिवलिंग है, वहां एक योजन (चार कोस) तक शिव का क्षेत्र है। ऋषियों द्वारा स्थापित शिवलिंग हो,
तो दो कोस तक शिव का क्षेत्र कहा गया है। कैसा भी पाप करने वाला कोई भी मनुष्य वहां पर मृत
हो जाए, तो वह भी शिवलोक में प्रतिष्ठित हुआ करता है, जो कि देवों के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए सभी
प्रयत्नों से वहां पर स्नानादि करना चाहिए और शिव क्षेत्र में समीप ही निवास करना चाहिए।
जो मनुष्य शिवालय में कुआं या बावड़ी बनवाता है, वह अपने इक्कीस कुलों सहित शिवलोक में प्रतिष्ठित
हुआ करता है।
|
यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है वह मेरी अपनी नहीं है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर आपको कोई परेशानी हो तो मुझे अवगत कराये.उस लेख को तुरंत हटा दिया जाएगा. मेरा उद्देश सिर्फ लोगो तक जानकरी पहुचाना है. अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें।
Thursday, July 12, 2018
करोड़ मंत्रों के तुल्य -om नम: शिवाय
Subscribe to:
Posts (Atom)