कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।
हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।
यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।\
हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है जानें कैसे प्रभु श्री राम हनुमान जी के आदर्श देवता हैं। हनुमान जी जहां राम के अनन्य भक्त हैं, वहां राम भक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमान जी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान जी ने श्री राम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है।
हनुमान जी की कृपा पाने और सभी परेशानियों से छुटकारा पाने का एक अचूक उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले भक्तों को दुख, रोग, पैसों की तंगी और भूत-प्रेत आदि से संबंधित कोई परेशानी नहीं होती और उनकी किस्मत का तारा सदैव चमकता रहता है।
कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं। हनुमान जी प्रभु श्री राम के श्रेष्ठ भक्तों की श्रेणी में आते हैं। हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ऐसी महान कृति है जिसको पढ़ने और सुनने से बल बुद्धि और विद्या की जागृती होती है।
हनुमान चालीसा के प्रत्येक दोहे से हमें कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है। हनुमान चालीसा कवच की तरह मनुष्य की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शक्तियों से रक्षा करती है। बल, विद्या, बुद्घि की जरूरत प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में पग पग पर पड़ती रहती है। हनुमान चालीसा एक रामबाण उपाय है।
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान जी की पूजा का विधान है। शनि देव को उन्होंने युद्ध में हराया था। शनि ने इनको आशीर्वाद दिया था कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करेगा उसे शनि का कष्ट नहीं होगा।
हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। मंगलवार को स्नान उपरांत अपने घर के पूजा स्थान में हनुमान जी के श्री विग्रह के सामने घी का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का कम से कम 11 बार पाठ करें। ऐसा 11 मंगलवार नियमित रूप से करें। पूजा के बाद गुड़ व चने गरीबों को, गाय या बंदर को खिला दें। ऐसा करने से जीवन की समस्त समस्याओं एवं कष्टों से मुक्ति तो प्राप्त होती ही है साथ ही घर में धन-संपत्ति के भण्डार भरे रहते हैं।
स्मरण रहें हनुमान चालीसा के 11 पाठ लगातार, बिना रुके किए जाने चाहिए। इस साधना में समय अधिक लगता है। अत: इस बात का विशेष ध्यान रखें यह पूजा शांति पूर्ण ढंग से की जानी चाहिए। किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न करें। हनुमान चालीसा के पाठ की संख्या ध्यान रखने के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।
यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।\
हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है जानें कैसे प्रभु श्री राम हनुमान जी के आदर्श देवता हैं। हनुमान जी जहां राम के अनन्य भक्त हैं, वहां राम भक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमान जी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान जी ने श्री राम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है।
हनुमान जी की कृपा पाने और सभी परेशानियों से छुटकारा पाने का एक अचूक उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले भक्तों को दुख, रोग, पैसों की तंगी और भूत-प्रेत आदि से संबंधित कोई परेशानी नहीं होती और उनकी किस्मत का तारा सदैव चमकता रहता है।
कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं। हनुमान जी प्रभु श्री राम के श्रेष्ठ भक्तों की श्रेणी में आते हैं। हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ऐसी महान कृति है जिसको पढ़ने और सुनने से बल बुद्धि और विद्या की जागृती होती है।
हनुमान चालीसा के प्रत्येक दोहे से हमें कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है। हनुमान चालीसा कवच की तरह मनुष्य की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शक्तियों से रक्षा करती है। बल, विद्या, बुद्घि की जरूरत प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में पग पग पर पड़ती रहती है। हनुमान चालीसा एक रामबाण उपाय है।
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान जी की पूजा का विधान है। शनि देव को उन्होंने युद्ध में हराया था। शनि ने इनको आशीर्वाद दिया था कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करेगा उसे शनि का कष्ट नहीं होगा।
हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। मंगलवार को स्नान उपरांत अपने घर के पूजा स्थान में हनुमान जी के श्री विग्रह के सामने घी का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का कम से कम 11 बार पाठ करें। ऐसा 11 मंगलवार नियमित रूप से करें। पूजा के बाद गुड़ व चने गरीबों को, गाय या बंदर को खिला दें। ऐसा करने से जीवन की समस्त समस्याओं एवं कष्टों से मुक्ति तो प्राप्त होती ही है साथ ही घर में धन-संपत्ति के भण्डार भरे रहते हैं।
स्मरण रहें हनुमान चालीसा के 11 पाठ लगातार, बिना रुके किए जाने चाहिए। इस साधना में समय अधिक लगता है। अत: इस बात का विशेष ध्यान रखें यह पूजा शांति पूर्ण ढंग से की जानी चाहिए। किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न करें। हनुमान चालीसा के पाठ की संख्या ध्यान रखने के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
श्री हनुमान चालीसा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
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