Thursday, November 15, 2018

हवन - पूजन सामग्री में सावधानी जरुरी

हवन - पूजन सामग्री में सावधानी जरुरी

हवन और यज्ञ का महत्व सभी जानते हैं l आध्यात्मिक, घर - परिवार, धन, सुख व स्वास्थ्य लाभ के लिए जप व हवन आदि सनातनधर्मी करते रहते हैं ल आजकल जानकारी मिल रही हैं कि
हवन के बाद साँस में तकलीफ, आंख में तकलीफ और कभी कभी त्वचा रोग भी हो रहे हैं। ऐसा बाज़ार में बिक रही नकली हवन और पूजन सामग्री के कारण भी हो रहा है। हवन में प्रायः शुद्ध देशी घी, अगर, तगर ,धार, शहद ,चन्दन की लकड़ी और बुरादा,सप्तमृत्तिका, रोली, सिंदूर, कपूर ,मौली, दूध दही, हल्दी, इत्र ,तिल का तेल, केसर ,भोजपत्र ,नैवेद्य ,गुग्गुल, कमलगट्टा ,जटामांसी आदि का प्रयोग मुख्यतः होता है। इनके अलावा अन्य कई सामग्रियां स्वयं हवनकर्ता को जुटानी पड़ती हैं। पहले लोग हवन सामग्री जंगल, बाग़ - बगीचों व अपने गाँव से ही एकत्र करते थे पर अब इस शहरी युग में हर चीज़ मिलने का एक स्थान बाज़ार ही है।
बाजार में मिलने वाले अधिकांश हवन सामग्री पैकेटों में लकड़ी का बुरादा, झाड़ू का बुरादा, कागज और कूड़ा - करकट की मात्रा अधिक मिलेगी। साथ ही गाजर घास के अंश जो सब जगह आसानी से मिल जाती है और टीबी ,दमा ,नेत्र रोगों को जन्म देती है। ऐसी हवन सामग्री से हवन कर क्या लाभ होगा। आपकी श्रद्धा के बल पर जो मिलना होगा केवल वही मिलेगा बाकि तो जब आप कुड़े से हवन करेंगे और देवता कूड़ा ग्रहण करेंगे तो प्रतिफल क्या होगा आप खुद समझ सकते हैं। ऐसे में लोग भारतीय पूजा पद्धति मंत्र, तंत्र, यंत्र ,ज्योतिष सब पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं। इसी तरह अच्छा घी 450 - 600 रुपए किलो से उपर बिक रहा है वहीँ बाजार में हवन के लिए घी चाहिए तुरंत दुकानदार 150₹- 200 रुपए किलो का पेकेट दिखा देगा। उसपर कहीं न कहीं लिखा मिल जायेगा की "नोट फॉर इंटरनल यूज़ या ह्यूमन यूज़ या नॉन एडिबल।" क्योंकि उनमे पेट्रोलियम जेली और पशुओं की चर्बी होती है घी की बस खुशबु होती है। अब ऐसे घी से हवन कर आप क्या लाभ लेंगे? हवन का एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है गुग्गुल। शुद्ध गुग्गुल क्वालिटी अनुसार 1500 से 2500 रूपये प्रति किलो तक मिलता है वहीं आज अधिकतर पंसारियों के पास 700 से 1000 रूपये किलो में मिल रहा है।सुनने में आया है कि मुनाफाखोर बड़ी मात्रा में नकली गूगल तैयार करवाते हैं। इसके लिए विदेशों से मिलने वाले रेजिन नामक केमिकल रसायन का उपयोग किया जाता है। इस केमिकल में समुद्र की गरम रेत, रंग और खुशबू मिलाते हैं। इसे मशीन से टुकड़ों में तोड़ा जाता है। जब हवनकुंड में इसे डाला जाता है तो केमिकल चूंकि ज्वलनशील होता है तो वो जल जाता है और रेत व अन्य चीजें बाकी सामग्रियों के साथ मिल जाती हैं। यही वजह है कि हवन के दौरान गुग्गुल की जो ह्रदय तृप्त करने वाली विशेष सुगंध वाला धुआं आना चाहिए, वैसा नहीं आता, बल्कि इससे छींक, सिर चकराना, चक्कर आना जैसी शिकायतें हो जाती हैं।
अगर बत्ती और धुप बत्ती का मुद्दा तो पुराना हो गया है। अगरबत्ती में जहाँ खुशबूदार बुरादा बांस की डंडी में चिपका होता है वहीँ धूप बत्ती में मोबिल आयल का कचरा, नकली तेलों के ड्रमों के पेंदे में जमा गंदगी और खुशबु दर बुरादा रहता है। ऐसी चीजों की खुशबु से देवता प्रसन्न नहीं होंगे।इसके अलावा धार यानि सूखे फलों के चूर्ण के नाम पर सड़े सूखे फलों का चूर्ण मिलता है । अशुद्ध हवन सामग्री एवं अनुचित मात्रा सर्वथा त्याज्य है।
हवन सामग्री में जितना तिल काम में लिया जाता है उससे आधा चावल और चावल का आधा जौं आदि लिया जाता है l वहीँ अब रेडीमेड पैकेट आ रहे हैं जिसमे तिल ही सबसे कम रहता है क्योंकि यह सबसे महंगा है। ऐसी मान्यता है की ये मात्रा सही न होने पर यज्ञ करने वाला और यजमान दोनों ही गंभीर रोगों के शिकार बनते हैं। शहद में शीरा मिला होता है। चन्दन की लकड़ी और बुरादे के नाम पर नकली एसेंस डाल कर चन्दन के साथ भिगो कर लकड़ियाँ बिकती हैं ।सप्तमृत्तिका यानि सात स्थानों की मिटटी जिसमे हाथी के खुर, घोड़े के खुर ,दीमक की बाम्बी, राजा के घर की ,तीर्थ स्थल की ,गोशाला की और नदी तट की मिटटी चाहिए होती है। अब इसके भी पैकेट आने लगे हैं । अब किस्मे कितना और क्या होगा भगवान ही जाने? कपूर की आजकल टिक्की मिलती है वह आरती ख़तम दीपक शांत पर टिक्की सलामत बची रहती है। असली कपूर की पहचान ही यही थी कि खुला रखा हो तो हवा में उड़ जायेगा और जलेगा तो जलने के बाद कुछ शेष नहीं बचता था। वो कपूर लोग सर में लगाते थे , पेट ठीक ने होने पर एक चुटकी फांक लेते थे ,दांत दर्द में दांत के निचे दबाते थे। पर इस पैकेट वाले कपूर में लिखा होता है "नॉन एडिबल या नॉट फॉर इंटरनल यूज़। केसर की मिलावट के बारे में तो जितना कहें कम है। रोली भी सिंथेटिक आ रही है रंग मिली और सिंदूर भी। आज सुबह तिलक करो तो परसों तक माथे पे निशान बना रहे ऐसी। इतनी पक्की।कलावा भी कच्चे सूत की जगह सिंथेटिक धागे और पक्के सूत का आने लगा है। कमलगट्टा जैसी चीज़ भी अब नकली आने लगी है तो लक्ष्मी माता कहाँ से प्रसन्न हों।
जटामांसी भी नकली आती है उसके जैसी दिखने वाली चिजों में अन्यथा किसी भी पौधे के चूर्ण में एसेंस डालकर जटामांसी चूर्ण के नाम पर बिकता है।तिल का तेल और हल्दी भी मिलावट युक्त आ रही है । अतः आपसे अनुरोध है की किसी भी प्रकार की पूजन और हवन सामग्री किसी भरोसे के स्थान से खरीदें या स्वयं एकत्र करें। ये महंगी अवश्य होगी पर इसके इस्तेमाल के बाद आपको इनका असर भी नज़र आयेगा। अन्यथा नकली कूड़ा करकट केमिकल एसेंस मिली पूजन हवं सामग्री के इस्तेमाल से न सिर्फ आपके धन का नुकसान होगा बल्कि आपकी श्रद्धा और विश्वास को चोट लगेगी। हवन के लिए बाजार से पैकेट बन्द सामग्री लेने के स्थान पर घर में मौजूद चीजों से ही मुख्य सामग्री तैयार कर हवन करें ।
सामान्य हवन की सामग्री: - जौं का दोगुना चावल, उसका दोगुना तिल, जौं सम्भाग शक्कर दोगुना घी होना चाहिए।इसके दशांश में गुग्गुल, सूखे मेवे जैसे बादाम, किशमिश मुनक्का अंजीर , मखाने, चिरौंजी, नारियल और पँचांश में अगर तगर नागकेसर तेजपत्र, तमालपत्र, हल्दी, कचूर, कपूर, दारुहल्दी, केसर, इंद्रजौं, कमलगट्टे, भोजपत्र, जटामासी, चन्दन लौंग इलायची, गिलोय, पित्तपापड़ा, अपामार्ग इत्यादि।
किसी प्रयोजन विशेष हेतु किये गए हवन में सामग्री उसी अनुसार बनेगी चाहे धन, यश स्वास्थ्य हेतु हो या अन्य कार्य। कई हवनों एवं विशेषतः तांत्रिक हवन हेतु कई या कुछ विशेष सामग्रियां निर्दिष्ट रहती हैं वे आप हवन करवाने वाले आचार्य या पुरोहित जी से जान सकते हैं। हवन सामग्री की परख भी उनसे ही करवा लें l
नोट:- मेरे लेख से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची तो तो उनका में क्षमाप्रार्थी हूँ ।बुद्धि जीविंयो के विचार सादर आमंत्रित हैं ।

अच्छा पूजा किसकी करते हो..??

पंडित जी बहुत परेशान हूँ.. सारा जीवन पूजा पाठ किया, मिला कुछ नहीं...

अच्छा पूजा किसकी करते हो..??

अरे सबकी करते हैं, बहुत करते हैं, रोज 1 घंटे से ज्यादा...
एक पाठ हनुमान चालीसा
एक बार बजरंग बाण
एक पाठ हनुमानाष्टक
एक पाठ शिव चालीसा
एक बार दुर्गा चालीसा
ग्यारह बार महामृत्युंजय
ग्यारह बार नवार्ण मंत्र
ग्यारह बार नरसिंह मंत्र
एक माला गुरुमंत्र
फला ज्योतिषी जी का बताया हुआ ये
फला महराज का बताया हुआ ये... आदि आदि

       ऐसे परेशान लोगों से नित्य सामना होता ही रहता है, उनसे मेरा एक सवाल:
 अगर पृथ्वी से जल निकालना हो तो हज़ार जगह एक एक फावड़ा मरोगे या एक ही जगह हज़ार...?
     फिर कहेंगे सारे देवी देवता हैं तो एक ही.. तो भैया पृथ्वी भी है तो एक ही, निकालो जल...??
   
   अर्थात किसी एक इष्ट का एक ही मंत्र या पाठ पकड़ लो, सारी भक्ति, शक्ति, श्रध्दा, समय, ऊर्जा वहीं लगा दो.. देखों कैसे रौनक नहीं आती