Friday, February 8, 2019

कमाल का ज्योतिषीय मंत्र उपाय - यह 1 ही मंत्र कर देगा 9 ग्रहों के दोष शांत

मानव और कुदरत का अटूट संबंध है। प्रकृति की हर हलचल मानव जीवन को और इंसान की हर गतिविधि प्रकृति को प्रभावित करती है। प्राचीन ऋषि मुनियों ने यही ज्ञान-विज्ञान जान-समझकर ग्रह-नक्षत्रों को सांसारिक जीवन के सुख-दु:ख नियत करने वाला भी बताया। 
यही कारण है कि इंसान का कुदरत के साथ बेहतर तालमेल कायम रखने के लिए ज्योतिष शास्त्रों व धार्मिक कर्मों द्वारा ग्रह-नक्षत्रों की देव शक्तियों के रूप में पूजा और स्मरण का महत्व भी बताया गया है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक हर ग्रह जीवन में विशेष सुख-दु:ख का कारक है। इसलिए हर दिन ग्रह विशेष का खास मंत्रों से स्मरण सांसारिक कामनाओं को सिद्ध करने वाला माना गया है। 
इसी कड़ी में नवग्रह उपासना के लिए हर रोज एक ऐसा शुभ मंत्र बोलने का महत्व भी बताया गया है, जिसके द्वारा नवग्रह सूर्य, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु का स्मरण एक ही साथ किया जा सकता है। यह हर दिन और काम को शुभ बनाने वाला, नवग्रह दोष शांति व अनिष्ट से रक्षा करने वाला अचूक ज्योतिषीय मंत्र उपाय भी माना गया है। जानिए यह मंत्र और आसान पूजा उपाय - 
- हर रोज यथासंभव नवग्रह मंदिर में हर ग्रह को पवित्र जल से स्नान कराएं व गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखा नवग्रह मंत्र का स्मरण करें या जप माला से 108 बार स्मरण कर मंगल कामनाओं के साथ मिठाई का भोग लगाकर आरती करें - 
 ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुत्व शुक्रश्च शनिश्च राहु: केतुश्च सर्वे प्रदिशन्तु शं मे।। 
-किसी विद्वान ब्राह्मण से ग्रह विशेष के लिए विशेष पूजा सामग्री की जानकारी लेकर पूजा की जाए तो यह उपाय जल्द मनोरथसिद्धि करने वाला सिद्ध होता है।

शिवलिंग की हक़ीक़त क्या है ?

परमेश्वर ही सच्चा शिव अर्थात कल्याणकारी है । जो प्राणी उसकी शरण में आ जाता है , वह भी शिवत्व को प्राप्त करके स्वयं भी शिव रूप हो जाता है । इसी को अलंकारिक भाषा में भक्त का भगवान से एकाकार होना कहा जाता है ।भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।

इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।

सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।

वशीकरण प्रयोग

यह प्रयोग बड़ा ही आसान प्रयोग है और शीघ्र प्रभाव देने वाला भी ,
इसीलिए इस प्रयोग को दुर्लभ माना जाता है॰
वैसे भी यह प्रयोग कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मंगलवार के दिन
किया जाता है,परंतु हमारे कुछ लोगो ने इस प्रयोग को मंगलवार ,
अष्टमी या कृष्ण पक्ष का कोई अच्छया तिथि हो सम्पन्न करके
सफलता हासिल की है॰ इस प्रयोग मे एक पान
का पत्ता लेना है,ज्यो किसी पान के दुकान मे आसानी से मिल
जाता है,और इस पत्ते को कथ्था लगाकर खाया जाता है
(नागरवेल),तो इस पत्ते पे जिसे वश करना है उस व्यक्ति का नाम
लिखे और नाम को देखते हुये निम्न मंत्र का जाप 108 बार करे और
पत्ते पे तीन बार फुक मारे॰
॥ क्लीं क्रीं हुं क्रों स्फ़्रों कामकलाकाली स्फ़्रों क्रों हुं
क्रीं क्लीं स्वाहा ॥
अब इस अभिमंत्रित पत्ते को अपने मुह मे डालकर धीरे-धीरे चबाते हुये
निम्न मंत्र जाप जब तक पूरा पत्ता चबाना खत्म ना हो जाये तब तक
करना है,
॥ ॐ ह्रीं क्लीं अमुकी क्लेदय क्लेदय आकर्षय आकर्षय मथ मथ पच
पच द्रावय द्रावय मम सन्निधि आनय आनय हुं हुं ऐं ऐं
श्रीं श्रीं स्वाहा ॥
जब पत्ता समाप्त हो जाये तो थोड़ा पानी पी लीजिये और जिसे वश
करना हो उसका स्मरण करते हुये फिर से निम्न मंत्र का जाप 108 बार
करे,
॥ क्लीं क्रीं हुं क्रों स्फ़्रों कामकलाकाली स्फ़्रों क्रों हुं
क्रीं क्लीं स्वाहा ॥
बात सिर्फ ईतनी है की यह प्रयोग अछ्ये कार्य के कीजिये
सफलता मिलती है,बुरे कार्य के लिए करोगे तो असफलता भी निच्छित
है॰
विशेष: - इस साधना मे किसिभी माला की उपयुक्तता नहीं है,और
प्रयोग करते समय शरीर पे किसी भी प्रकार का वस्त्र
नहीं होना चाहिये,इतना सूत्र ध्यान मे रखिये॰

रुद्राक्ष



हिंदू धर्म में रुद्राक्ष काफी अहमियत रखता है। मान्यताएं हैं कि शिव के नेत्रों से रुद्राक्ष का उद्भव हुआ और यह हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। रुद्राक्ष, दो शब्दों रुद्र और अक्ष से मिलकर बना है। कहते हैं कि रुद्राक्ष सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखता है, इसे धारण करने मात्र से ही तमाम समस्याओं का समाधान हो जाता है। साथ ही रुद्राक्ष को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं।