Thursday, August 2, 2018

महिमा पारद शिवलिंग की

ज्योतिष की दृष्टि से कर्क, वृषभ, तुला, मिथुन और कन्या राशि के जातकों को इसकी पूजा से विशेष फल प्राप्त होते हैं। सामान्य रूप से इसके पूजन से विद्या,धन, ग्रहदोष निवारण, कार्य में आने वाली बाधाएं और ऊपरी बाधाएं दूर होकर सुख -समृद्धि प्राप्त होती है।


सृष्टि के प्रारंभ से ही आशुतोष भगवान सदाशिव की आराधना निराकार और साकार दोनों ही रूपों में की जाती रही है। मनुष्य के अलावा शिव आराधना देवता,दानव, किन्नर,गंधर्व, भूत-प्रेत पिशाचादि इतर योनि के जीव भी करते हैं। शिवभक्त पुष्पदंत के अनुसार महेशान्नापरोदेवो यानी भगवान महेश से बढ़कर कोई अन्य देव नहीं है इसलिए उन्हें महादेव कहा गया है। इनकी लिंग रूप में आराधना युगों-युगों से की जाती रही है। ये लिंग अनेक प्रकार की धातु, मणि, मिट्टी और पाषाण से निर्मित होते हैं हैं। कुछ शिवलिंग स्वयंभू होते हैं तथा कुछ ज्योर्तिलिंग होते हैं। इन सभी प्रकार के शिवलिंगों की आराधना का स्थान और समय के अनुसार अपना अपना महžव है। किंतु इन सबमें सर्वोच्च शिवलिंग पारद धातु से निर्मित माना गया है। रसेन्द्र पुराण में कहा गया है-बद्ध: साक्षात्सदाशिव: यानी दोष हीन बद्ध पारा साक्षात् सदाशिव का ही रूप है। इसलिए महाशिवरात्रि सहित प्रत्येक माह में पड़ने वाल प्रदोष व्रत पर इसकी उपासना विशेष पुण्यदायिनी होती है।

इस शिवलिंग में शिव-शक्ति लक्ष्मी, कुबेर सहित तैंतीस कोटि देवता का निवास होता है। इसे घर में स्थापित करने पर भूमिदोष,पितृदोष,कुल देवी देवता के दोष और नवग्रह से होने वाली पीड़ा से मुक्ति मिलती है। पारद शिवलिंग को रसलिंग भी कहा जाता है। भगवान शंकर के जितने नाम कहे गए हैं उतने ही नाम पारद के भी बतलाए हैं। बद्ध पारद और भगवान शिव में कोई अन्तर नहीं है। इनका ध्यान करने से मन की चंचलता शांत होती है। संपूर्ण त्रैलोक्य में मन को शांत और नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय रसलिंग का पूजन और दर्शन है। इस लिंग पूजा के पांच प्रकार बताए गए हैं। भक्षण ( पारद से निर्मित भस्मों से रोगोपचार), स्पर्शन ( रसलिंग को स्पर्श करना), दान ( रसलिंग का दान करना),ध्यान ( इसके दिव्य स्वरूप का ध्यान करना) तथा परिपूजन ( षोडशोपचारादि पूजन करना)। इनमें भक्षण को छोड़कर शेष चार प्रकार की अर्चना सभी के द्वारा की जा सकती है।
पारद में एक अरब गुण होते हैं। इसके दर्शन,स्पर्श और पूजन से मिलने वाले फल के बारे में कहा गया है कि जो मनुष्य भक्ति पूर्वक रसलिंग बनाकर पूजन करता है वह तीनों लोकों में जितने शिवलिंग हैं,उन सब की पूजा के फल को प्राप्त होता है। स्वयंभू सहस्रों शिवलिंगों की पूजा करने से जो फल प्राप्त होता है,उससे करोड़ गुना फल पारद शिवलिंग की पूजा से प्राप्त होता है।

केदारादीनि लिंगानि पृथिव्यां यानि कानिचित।
तानि दृष्टवा य यत्पुण्यं तत्पुण्यं रसदर्शनात्।।

यानी इस पृथ्वी पर केदारनाथ से लेकर जितने भी शिवलिंग हैं उन सबके दर्शन करने से जो पुण्य प्राप्त होता है,वह पुण्य केवल पारदशिवलिंग के दर्शन मात्र से होता है। अन्य स्थान पर कहा गया है कि हे पार्वती! जो मनुष्य ह्वदय कमल में स्थित पारद का स्मरण करता है,वह अनेक जन्मों के संचित पापों से तत्काल छूट जाता है। पारद शिवलिंग की महिमा का वर्णन इन शब्दों मे पढ़कर स्वत: श्रद्धा जाग्रत हो जाती है- जो पुण्य एक सौ अश्वमेध यज्ञ करने से ,करोड़ो गाएं दान करने से, एक हजार तोला स्वर्ण दान करने से तथा सब तीर्थो में अभिषेक करने से होता है, वही पुण्य पारद शिवलिंग के दर्शन मात्र से होता है।

सर्वसिद्धिप्रदं देविं सर्वकामफलप्रदम्।
स्मरणं रस राजस्य सर्वोपद्रवनाशनम्।।

हे देवि ! रसराज के स्मरण मात्र से सर्वप्रकार की सिद्धि, सब कार्यो में सफलता तथा सभी उपद्रवों का नाश होता है।

सप्तद्वीपे धरण्यांच पाताले गगने दिवि।
यान्यर्चयन्ति लिंगानि तत्पुण्यं रस पूजया।।

सातों द्वीपों,पृथ्वी,पाताल,गगन एवं दिशाओं में स्थित शिवलिंगों के पूजन से जो पुण्य होता है,वही पुण्य केवल पारदशिवलिंग की पूजा से प्राप्त होता है।

पूजन विघि
महाशिवरात्रि के दिन दोपहर में जिस समय अभिजित मुहूर्त हो, दस संस्कारों से संस्कारित पारद धातु का अंगुष्ठ प्रमाण का शिवलिंग बनवाकर अपने पूजा कक्ष में ईशान्य कोण में स्थापित करें। लिंग का षोडषोपचार पूजन से करने अथवा करवाने के बाद रूद्राक्ष की माला से ऊं पारदेश्वराय नम: इस मंत्र की आवृत्ति एक हजार आठ बार करें। इसके बाद प्रतिदिन शिवलिंग का सावधानीपूर्वक स्त्रान, धूप,दीप, नैवेद्य सहित अर्चना करते हुए एक पुष्प अर्पण करें। उपर्युक्त मंत्र की एक सौ आठ आवृत्ति कम से कम अवश्य करें। ज्योतिष की दृष्टि से कर्क, वृषभ, तुला, मिथुन और कन्या राशि के जातकों को इसकी पूजा से विशेष फल प्राप्त होते हैं। सामान्य रूप से इसके पूजन से विद्या,धन, ग्रहदोष निवारण, कार्य में आने वाली बाधाएं और ऊपरी बाधाएं दूर होकर सुख -समृद्धि प्राप्त होती है। यह आराधना एक साल तक निर्बाध रूप से करते रहने पर साक्षात शिव की कृपा होती है।

ज्योतिर्विद् डॉ. गोविन्द माहेश्वरी,
संविदा प्राध्यापक, ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला,
विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, उज्जैन