Friday, February 8, 2019

हमें हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, क्योंकि...

कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।

हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।


यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।\


हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है जानें कैसे प्रभु श्री राम हनुमान जी के आदर्श देवता हैं। हनुमान जी जहां राम के अनन्य भक्त हैं, वहां राम भक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमान जी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान जी ने श्री राम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है।


हनुमान जी की कृपा पाने और सभी परेशानियों से छुटकारा पाने का एक अचूक उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले भक्तों को दुख, रोग, पैसों की तंगी और भूत-प्रेत आदि से संबंधित कोई परेशानी नहीं होती और उनकी किस्मत का तारा सदैव चमकता रहता है।


कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं। हनुमान जी प्रभु श्री राम के श्रेष्ठ भक्तों की श्रेणी में आते हैं। हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ऐसी महान कृति है जिसको पढ़ने और सुनने से बल बुद्धि और विद्या की जागृती होती है।


हनुमान चालीसा के प्रत्येक दोहे से हमें कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है। हनुमान चालीसा कवच की तरह मनुष्य की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शक्तियों से रक्षा करती है। बल, विद्या, बुद्घि की जरूरत प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में पग पग पर पड़ती रहती है। हनुमान चालीसा एक रामबाण उपाय है। 


ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान जी की पूजा का विधान है। शनि देव को उन्होंने युद्ध में हराया था। शनि ने इनको आशीर्वाद दिया था कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करेगा उसे शनि का कष्ट नहीं होगा। 

हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। मंगलवार को स्नान उपरांत अपने घर के पूजा स्थान में हनुमान जी के श्री विग्रह के सामने घी का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का कम से कम 11 बार पाठ करें। ऐसा 11 मंगलवार नियमित रूप से करें। पूजा के बाद गुड़ व चने गरीबों को, गाय या बंदर को खिला दें। ऐसा करने से जीवन की समस्त समस्याओं एवं कष्टों से मुक्ति तो प्राप्त होती ही है साथ ही घर में धन-संपत्ति के भण्डार भरे रहते हैं।


स्मरण रहें हनुमान चालीसा के 11 पाठ लगातार, बिना रुके किए जाने चाहिए। इस साधना में समय अधिक लगता है। अत: इस बात का विशेष ध्यान रखें यह पूजा शांति पूर्ण ढंग से की जानी चाहिए। किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न करें। हनुमान चालीसा के पाठ की संख्या ध्यान रखने के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 

        


श्री हनुमान चालीसा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥


॥चौपाई॥


श्री हनुमान चालीसा जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।

अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।

कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।

काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।

तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।

राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।

राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।

बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।

रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।

नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।

राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।

लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु ।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।

सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।

तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सह्मारो आपै ।

तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।

महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।

तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।

सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुह्मारा ।

है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।

असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।

अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

राम रसायन तुह्मरे पासा ।

सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुह्मरे भजन राम को पावै ।

जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई ।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥ 

जो सत बार पाठ कर कोई ।

छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।

होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥

॥दोहा॥


पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

नीलम (नीलमणि बदलता है भाग्य)

नीलमणि पर्वत पर नीलम बहुत मिलता है। इस चराचर जगत के रत्नों के संसार में भगवान भी शनिदेव का रत्न नीलम श्रेष्ट-ए-चमत्कारिक माना गया है। इसे पहनने के बाद यह जिसके लिए शुभ हो जाए उसे राजा और जिसके लिए अशुभ हो जाए उसे रंक बना देता है। औद्योगिक जगत और फिल्मी जगत की बड़ी हस्तियों ने नीलम धारण कर रखा है। विश्व का सबसे बड़ा नीलम 888 कैरेट का श्री लंका में है। जिसकी कीमत करीब 14 करोड़ आंकी गई है। हाथ के किसी भी पर्वत से निकली हुई रेखा शनि पर्वत पर पहुंच कर भाग्य रेखा बन जाती है। क्योंकि मृत्युलोक का दण्डाधिकारी भी कहा गया है इसलिए सबसे बड़ी ऊंगली, मध्यमा पर उनका वास है। मध्यमा ऊंगली में नीलम पहनने का अर्थ शनिदेव के गले में नीलमणि की माला पहनाने जैसा है। नीलम नीला, लाल (खूनी नीलम) श्वेत, हरा , बैंगनी आसमनी आदि रंगों में पाया जाता है। सर्वश्रेष्ट नीलम भारत के कश्मीर में मिलते हैं। यह विशुद्ध रंग मोर के गर्दन के रंग का होता है। भारत के अतिरिक्त वर्मा, श्रीलंका, अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि में भी नीलम मिलता है।

नीलम के प्रकार - भारतीय ग्रंथों के अनुसार नीलम दो प्रकार का होता है।
1- जलनील
2- इन्द्रनील

जिस लघु नीलम के भीतर सफेदी हो और चारों और नीतियां हो उसे जलनील कहते हैं। जिस नीलम के अन्दर श्याम आया हो बाहर नीतिमा भारी हो, वह इन्द्रजील कहलाता है। यह नीले और लाल रंग का मिश्रम अर्थात् बैंगनी रंग का होता है।



उत्तम नीलम के गुण- श्रेष्ठ नीलम चिकना, चमकीला, साफ व पारदर्शी होता है। इसमें पतली-पतली नीली रश्मियां निकलती हैं। शुद्ध नीलम की पहचान- उत्तम नीलम के पास यदि तिनका लाया जाए तो वह उससे चिपक जाता है। नीलम दूध में रखने पर दूध नीला दिखने लगता है

दोषयुक्त नीलम - दोषयुक्त नीलम दुष्प्रभाव डालता है। अतः ऐसे नीलम जिसमें गषा हो, जाल हो चमक न हो, जिसमें लाल रंग के छोटे-छोटे बिन्दु हों, जिसमें सफेद लकीरें हों, दूधिया रंग का हो , लेने से बचना चाहिए। नीलम के उपरत्न नीली और जमुनिया है। नीली यह नीले रंग का हल्का रक्तिम वाला होता है। इसमें चमक होती है। जमुनिया पक्के जामुन के रंग का होता है। यह चिकना, साफ एवं पारदर्शी होता है।

नीलम को कौन धारण कर सकता है - यह रत्न धारण करते समय विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। इसलिए किसी योग्य ज्योतिष को जन्मपत्री का विश्लेषण करने के पश्चात् ही नीलम रत्न पहने। शौकिया न पहने, नुकसानदायक हो सकता है।

मेष लग्न के लिए शनि कर्म भाव और लाभ भाव का स्वामी माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनना चाहिए। वृष लग्न, तुला लग्न के लिए शनि योगकारक माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनने से विशेष लाभ होगा।

मिथुन लग्न के लिए अष्टमेश होने के साथ त्रिकोण का स्वामी भी होने से इस राशि के लिए शुभ माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनने से लाभ होगा। स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।

कर्क लग्न और सिंह लग्न या कर्क राशि और सिंह राशि वाले जातकों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। दोनों ही लग्न या राशि के स्वामी शनि के मित्र नहीं है। पहनने की इच्छा हो तो परीक्षण के बाद ही पहनें।

कन्या लग्न- कन्या लग्न या राशि वाले शनि की महादशा में नीलम पहने तो अवश्य लाभ होगा।

वृश्चिक लग्न - वृश्चिक लग्न या राशि वालों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। ध्यान रहे यदि शनि 6,8,12 भाव में हो तो नीलम पहनने से बचें। यदि शनि पंचम, नवम, दशम एकादश भाव में हो तो शनि की महादशा में धारण कर सकते हैं।

धनु लग्न - धनु लग्न वाले जातकों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। अगर जरूरी है तो शनि की महादशा में पीताम्बर नीलम पहन सकते हैं। मकर एवं कुम्भ लग्न या राशि वालों को नीलम हमेशा पहनना चाहिए।

मीन लग्न वाले जातकों को प्रयत्न करने पीताम्बर नीलम ही पहनें शनि यदि लग्न दूसरे, चतुर्थ, पंचम, नवम, एकादश में हो तो शनि की महादशा में नीलम पहनने से आर्थिक लाभ संभव है।

इस प्रकार नीलम चार लग्न या राशि, (वृष,तुला,मकर, कुंभ) में उत्पन्न जातक जीवन पर्यत्न तक धारण कर सकते हैं।

नीलम का प्रभाव - वैसे तो शनि देव मंद गति गामी ग्रह है। परन्तु उनका रत्न नीलम सभी रत्नों में शीघ्र प्रभाव दिखाने वाला है। यदि नीलम धारण करने के बाद मन व्याकुल हो जाए, बुरे स्वप्न आने लगे या कोई अरिष्ट हो जाए तो नीलम नहीं पहनना चाहिए।

नीलम द्वारा रोगोपचार - नीलम का मुख्य प्रभाव शरीर के संचालन पर पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार नीलम तिक्त रस वाला है। जो वात, पित, कफ वायु के कष्टों को दूर करता है। पागलपन की बीमारी में नीलम की भस्म उत्तम औषधि मानी गई है। मिरगी, लकवा, स्नायु विकार गंजापन से बचाव में यह लाभकारी है। आयुर्वेद के अनुसार खांसी, दमा, रक्तविकार, उल्टी बवासीर, विषमज्वर आदि में लाभदायक है।

नीलम धारण करने का तरीका - नीलम को शनि के नक्षत्र पुस्य, अनुराधा, उत्तराभाद्वपद में, धारण को अगर ये नक्षत्र न हो तो वृष तुला, मकर लग्न के नक्षत्रों में भी पहन सकते हैं। नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु में जड़वाकर पहनने से पूर्व ऊँ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप अवश्य करें। नीलम का वजन चार रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए। 5 रत्ती या 7 रत्ती का ही लेना चाहिए। जो व्यक्ति नीलम या उपरत्न न ले सकता हो वह लाजावर्त, नीला गार्नेट, नीला स्पाईनल आदि धारण कर सकते हैं।

कमाल का ज्योतिषीय मंत्र उपाय - यह 1 ही मंत्र कर देगा 9 ग्रहों के दोष शांत

मानव और कुदरत का अटूट संबंध है। प्रकृति की हर हलचल मानव जीवन को और इंसान की हर गतिविधि प्रकृति को प्रभावित करती है। प्राचीन ऋषि मुनियों ने यही ज्ञान-विज्ञान जान-समझकर ग्रह-नक्षत्रों को सांसारिक जीवन के सुख-दु:ख नियत करने वाला भी बताया। 
यही कारण है कि इंसान का कुदरत के साथ बेहतर तालमेल कायम रखने के लिए ज्योतिष शास्त्रों व धार्मिक कर्मों द्वारा ग्रह-नक्षत्रों की देव शक्तियों के रूप में पूजा और स्मरण का महत्व भी बताया गया है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक हर ग्रह जीवन में विशेष सुख-दु:ख का कारक है। इसलिए हर दिन ग्रह विशेष का खास मंत्रों से स्मरण सांसारिक कामनाओं को सिद्ध करने वाला माना गया है। 
इसी कड़ी में नवग्रह उपासना के लिए हर रोज एक ऐसा शुभ मंत्र बोलने का महत्व भी बताया गया है, जिसके द्वारा नवग्रह सूर्य, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु का स्मरण एक ही साथ किया जा सकता है। यह हर दिन और काम को शुभ बनाने वाला, नवग्रह दोष शांति व अनिष्ट से रक्षा करने वाला अचूक ज्योतिषीय मंत्र उपाय भी माना गया है। जानिए यह मंत्र और आसान पूजा उपाय - 
- हर रोज यथासंभव नवग्रह मंदिर में हर ग्रह को पवित्र जल से स्नान कराएं व गंध, अक्षत, फूल अर्पित करें। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखा नवग्रह मंत्र का स्मरण करें या जप माला से 108 बार स्मरण कर मंगल कामनाओं के साथ मिठाई का भोग लगाकर आरती करें - 
 ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुत्व शुक्रश्च शनिश्च राहु: केतुश्च सर्वे प्रदिशन्तु शं मे।। 
-किसी विद्वान ब्राह्मण से ग्रह विशेष के लिए विशेष पूजा सामग्री की जानकारी लेकर पूजा की जाए तो यह उपाय जल्द मनोरथसिद्धि करने वाला सिद्ध होता है।

शिवलिंग की हक़ीक़त क्या है ?

परमेश्वर ही सच्चा शिव अर्थात कल्याणकारी है । जो प्राणी उसकी शरण में आ जाता है , वह भी शिवत्व को प्राप्त करके स्वयं भी शिव रूप हो जाता है । इसी को अलंकारिक भाषा में भक्त का भगवान से एकाकार होना कहा जाता है ।भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।

इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।

सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।

वशीकरण प्रयोग

यह प्रयोग बड़ा ही आसान प्रयोग है और शीघ्र प्रभाव देने वाला भी ,
इसीलिए इस प्रयोग को दुर्लभ माना जाता है॰
वैसे भी यह प्रयोग कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मंगलवार के दिन
किया जाता है,परंतु हमारे कुछ लोगो ने इस प्रयोग को मंगलवार ,
अष्टमी या कृष्ण पक्ष का कोई अच्छया तिथि हो सम्पन्न करके
सफलता हासिल की है॰ इस प्रयोग मे एक पान
का पत्ता लेना है,ज्यो किसी पान के दुकान मे आसानी से मिल
जाता है,और इस पत्ते को कथ्था लगाकर खाया जाता है
(नागरवेल),तो इस पत्ते पे जिसे वश करना है उस व्यक्ति का नाम
लिखे और नाम को देखते हुये निम्न मंत्र का जाप 108 बार करे और
पत्ते पे तीन बार फुक मारे॰
॥ क्लीं क्रीं हुं क्रों स्फ़्रों कामकलाकाली स्फ़्रों क्रों हुं
क्रीं क्लीं स्वाहा ॥
अब इस अभिमंत्रित पत्ते को अपने मुह मे डालकर धीरे-धीरे चबाते हुये
निम्न मंत्र जाप जब तक पूरा पत्ता चबाना खत्म ना हो जाये तब तक
करना है,
॥ ॐ ह्रीं क्लीं अमुकी क्लेदय क्लेदय आकर्षय आकर्षय मथ मथ पच
पच द्रावय द्रावय मम सन्निधि आनय आनय हुं हुं ऐं ऐं
श्रीं श्रीं स्वाहा ॥
जब पत्ता समाप्त हो जाये तो थोड़ा पानी पी लीजिये और जिसे वश
करना हो उसका स्मरण करते हुये फिर से निम्न मंत्र का जाप 108 बार
करे,
॥ क्लीं क्रीं हुं क्रों स्फ़्रों कामकलाकाली स्फ़्रों क्रों हुं
क्रीं क्लीं स्वाहा ॥
बात सिर्फ ईतनी है की यह प्रयोग अछ्ये कार्य के कीजिये
सफलता मिलती है,बुरे कार्य के लिए करोगे तो असफलता भी निच्छित
है॰
विशेष: - इस साधना मे किसिभी माला की उपयुक्तता नहीं है,और
प्रयोग करते समय शरीर पे किसी भी प्रकार का वस्त्र
नहीं होना चाहिये,इतना सूत्र ध्यान मे रखिये॰

रुद्राक्ष



हिंदू धर्म में रुद्राक्ष काफी अहमियत रखता है। मान्यताएं हैं कि शिव के नेत्रों से रुद्राक्ष का उद्भव हुआ और यह हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। रुद्राक्ष, दो शब्दों रुद्र और अक्ष से मिलकर बना है। कहते हैं कि रुद्राक्ष सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखता है, इसे धारण करने मात्र से ही तमाम समस्याओं का समाधान हो जाता है। साथ ही रुद्राक्ष को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। 



Sunday, February 3, 2019

तिलक विशेष


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ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है 
तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में 
शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। 

चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, 
व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
तिलक कई प्रकार के होते हैं - मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि। 

यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो 
उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।

 किस दिन किसका तिलक लगाये !! 
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सोमवार👉 सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।

मंगलवार👉 मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।

बुधवार👉 बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।

गुरुवार👉 गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिये हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा। 

शुक्रवार👉 शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।

शनिवार👉 शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह।शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।

रविवार👉 रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।

1👉 तिलक करने से व्यक्त‍ित्व प्रभावशाली हो जाता है. दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्यक्त‍ि के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है.

2👉 ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है. लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं. यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है.

3👉 दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है. यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है.

4👉 इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है.

5👉 हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है. हल्दी में एंटी बैक्ट्र‍ियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है.

6👉 धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है.

7👉 माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है. 

तिलक लगाने का मंत्र !!
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केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् 
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Wednesday, November 21, 2018

रूद्राभिषेक का अर्थ एवं माहात्म्य


अभिषेक का मतलब होता है – स्नान करना या कराना। यह स्नान भगवान शंकर को उनकी प्रसन्नता हेतु जल एवं रूद्र-मंत्रों के साथ करवाया जाता है इसको रूद्राभिषेक कहते हैं। जल की धारा शिवजी को अति प्रिय है। साधारण रूप से अभिषेक या तो जल या गंगाजल से होता है परंतु विशेष अवसर एवं विशेष प्रयोजन हेतु दूध, दही, घी, शकर, शहद, पंचामृत आदि वस्तुओं से किया जाता है।



शिव को रूद्र इसलिए कहा जाता है – ये रूत् अर्थात् दुख को नष्ट कर देते है। आसुतोष भगवान सदाशिव की उपासना में रूद्राभिषेक का विशेष माहात्म्य है। वेद के ब्राहमण-ग्रन्थों में, उपनिषदों मंे, स्मृतियों में और पुराणों में रूद्राभिषेक के पाठ, जप आदि कि विशेष महिमा का वर्णन है। रूद्राध्याय के समान जपनेयाग्य, स्वाध्याय करनेयोग्य वेदों और स्मृतियों आदि में अन्य कोई मंत्र नहीं है। इस ग्रन्थ में ब्रह्म के निर्गुण एवं सगुण दोनों रूपों का वर्णन है। मन, कर्म तथा वाणी से परम पवित्र तथा सभी प्रकार की आसक्तियों से रहित होकर भगवान सदाशिव की प्रसन्नता के लिए रूद्राभिषेक करना चाहिए। मनुष्य का मन विषयलोलुप हाकर अधोगति को प्राप्त न हो और व्यक्ति अपनी चित्तवृत्तियों को स्वच्छ रख सके इसके निमित्त रूद्रका अनुष्ठान करना मुख्य साधन है। यह रूद्रनुष्ठान प्रवृत्ति-मार्ग से निवृत्ति मार्ग को प्राप्त कराने में समर्थ है। इसके जप, पाठ से तथा अभिषेक आदि साधनों से भगवद्भक्ति, शान्ति, पुत्र-पौत्रादी की वृद्धि, धन-धान्य की संपन्नता, तथा स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। वहीं परलोक मंे सद्गति एवं परमपद (मोक्ष) भी प्राप्त होता है। रूद्राभिषेक परम पवित्र तथा धन, यश, और आयु की वृद्धि करनेवाला है। अपने कल्याण के लिए भगवान सदाशिव की प्रसन्नता के लिए निष्कामभाव से यजन करना चाहिए, इसका अनंत फल होता है। सब प्रकार की सि़िद्ध के लिए रूद्राभिषेक करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।

रूद्राभिषेक करवाने से लाभ
भगवान शिवजी कि प्रसन्नता के लिए रूद्राभिषेक करवाना चाहिए।
इससे अमाप पुण्यों की प्राप्ति होती हैं एवं पापों का नाश होता है।
रूद्राभिषेक से भगवान शिवकी कृपा से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
रूद्राभिषेक करने वाला परा मुक्ति, सायुज्य मुक्ति, विशुद्ध मुक्ति, कैवल्य पद, परम गति को प्राप्त करता है।

जो रोगी और पापी रूद्राभिषेक करता है वह रोग और पाप से मुक्त होकर सुख को प्राप्त करता है।
रूद्राभिषेक करने से उपद्रवों की शांति होती है।
रूद्राभिषेक करवाने से जीवन आनंद एवं शांतिपूर्ण व्यतीत होता है एवं दीर्घजीवन की प्राप्ति होती है।
इसके करवाने से संर्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होते है।
यह कल्मशों का नाशक, सब पापों का निवारक तथा सब प्रकार के दुखों और भयों को दूर करनेवाला है।
इसके करवाने से व्यक्ति सुरापान के दोष से छूट जाता है।
रूद्राभिषेक करवाने से व्यक्ति ब्रहमहत्या के दोष से मुक्त हो जाता है।
इसके करवाने से व्यक्ति स्वर्ण की चोरी के पाप से छुट जाता है।
रूद्राभिषेक के प्रभाव से व्यक्ति शुभाशुभ कर्मो से उद्धार पाता है एवं वह भगवान शिवजी के आश्रित हो जाता है।
इससे ज्ञान की प्राप्ति होती है एवं व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है।
आकस्मीक संकट की स्थिति में रूद्राभिषेक करवाने से शिवजी की कृपा से भयंकर स्थिति भी टल जाती है।

विभिन्न द्रव्यों से अभिषेक करने पर लाभ

जल की धारा शिवजी को अति प्रिय है। भगवान शिवजी को प्रसन्न करने हेतु रूद्राभिषेक विभिन्न द्रव्यों जैसे – दूध, दही, घी, शहद, पंचामृत, सरसों, शकर, गन्ने के रस आदि से किया जाता है। इन द्रव्यों के द्वारा अभिषेक करने पर जो लाभ होते हैं वे निम्नलिखित है:-

जल से अभिषेक करने पर:- जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
तीर्था के जल से अभिषेक करने पर:-तीर्थाें के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्वर को शांत करने के लिए जल की धार से अभिषेक करना चाहिए।
दूध से अभिषेक करने पर:- दूध से अभिषेक करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है। प्रमेह रोग का नाश होता है। मनोभिलाषित कामना की पूर्ति होती है।
शक्कर से मिले दूध से अभिषेक करने पर:-शक्कर से मिले दूध से अभिषेक करने पर बुद्धि की जडता का नाश होता है एवं बुद्धि श्रेष्ठ होती है।
गोदुग्ध द्वारा अभिषेक करने पर:-गोदुग्ध द्वारा अभिषेक करने पर वन्ध्या को पुत्र की प्राप्ति होती है, एवं जिसकी संतान होकर मर जाती हैं उसकी संतान की रक्षा होती है। मनुष्य को दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है।
दही से अभिषेक करने पर:-दही से अभिषेक करने पर पशुओं की प्राप्ति होती है।
घी से अभिषेक करने पर:-घी से अभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है। इससे आरोग्य की प्राप्ति भी होती है।
शहद के द्वारा अभिषेक करने पर:-शहद के द्वारा अभिषेक करने पर पापों का नाश होता है। तपेदिक आदि रोग भी दूर हो जातें है।
शहद एवं धी से अभिषेक करने पर:-शहद एवं धी से अभिषेक करने पर धन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक करने पर:-गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
कुशोदक से अभिषेक करने पर:-कुशोदक से अभिषेक करने पर व्याधि की शांति होती है। इससे उपद्रवों कि शांति भी होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने पर:-सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रुका विनाश होता है।

उपर्युक्त द्रव्यों से अभिषेक करने पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करते है, एवं भक्तों के संकटों का नाश करते है। अतः विधि-विधान से खूब श्रद्धा एवं विश्वास के साथ रूद्राभिषेक करना चाहिए।

पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है ।

अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसेयाग्यों से भी प्राप्त नही होता !

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है । लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है !

(1) रूपक या षडड पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ खा गया है ।

शिव कल्प शुक्त --------1. प्रथम हृदय रूपी अंग है

पुरुष शुक्त ---------------2. द्वितीय सर रूपी अंग है ।

अप्रतिरथ सूक्त ---------3. कवचरूप चतुर्थ अंग है ।

मैत्सुक्त -----------------4. नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।

शतरुद्रिय ---------------5. अस्तरूप षष्ठ अंग खा गया है ।

इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्रश्त्ध्ययि के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है ।

(2) रुद्री या एकादिशिनि - रुद्राध्याय की गयी ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है ।

(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ के लघुरुद्रा पाठ खा गया है ।

यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होती है ।



(4) महारुद्र-- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है ।



(5) अतिरुद्र ---- महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पथ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है

ये (1)अनुष्ठात्मक (2) अभिषेकात्मक (3) हवनात्मक , तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो की अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है।




पार्थिव पूजन की विधि

भगवान आशुतोष महादेव का एक स्वरुप पार्थिव लिंग भी है । संसार की ऐसी कोई मनोकामना या यु कहे संसार में ऐसा कुछ भी नही है जो हमें पार्थिव पूजन से प्राप्त हो सके ।

पुराणों मे कइ जगह समय समय पर ब्रह्मा आदि देवताओं ने पार्थिव पूजन करके अपने विप्तियों को दूर करने की कई कथा आती है ।स्वयं माँ पार्वती जी ने शिव को प्राप्त करने के लिए पार्थिव (मिटटी का शिवलिंग) बनाकर उनकी आराधना की थी ।

श्री राम नाम की महिमा

कलयुग में न जप है न तप है और न योग ही है।सिर्फ राम नाम ही इस कलिकाल में प्राणी मात्र का सहारा है। श्री राम चन्द्र जी सहज ही कृपा करने वाले और परम दयालु हैं उस पर उनका नाम तो प्राणी मात्र को अभय प्रदान करने वाला और परम कल्याण कारी है।कलयुग में राम नाम का लिखित जाप सभी पापों को नष्ट कर मुक्ति प्रदान करने वाला है।इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस वेबसाइट का निर्माण किया गया है।आप सबसे हमारा अनुरोध है जितना अधिक संभव हो राम नाम का लिखित जप करें।इसी में हम सब का कल्याण है।

1,25,000 - इस जन्म में अजिॅत पापो का नाश होना शुरू हो जाता है ।
2,25,000 -जीवन के पापो का शमन हो जाता है व सभी क्रूर व दुष्ट गृहों का निवारण शुरू हो जाता है
5,00,000 -भगवान राम की कृपा से चरणों की भक्ति में वृध्दि होती हैं ।
10,00,000 -पूर्व जन्मों के समस्त पापो का क्षय होता हैं ।
25,00,000 -जीवन के दुःस्वप्न का नाश होता हैं एवं समस्त ऐश्वर्य भाग व मुक्ति का फल मिलता हैं ।
50,00,000 -सभी तरह को पुण्यों एवं यज्ञों का फल मिलता हैं ।
75,00,000 -अनेक जन्मों के पापौ का नाश हो जाता हैं तथा भगवान राम की अखण्ड भक्ति मिलती हैं ।
1,00,00,000 -अश्वमेघ यज्ञ के द्विगुण रूप में फल मिलता हैं और - सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णु लोकं स गच्छति ।

Thursday, November 15, 2018

हवन - पूजन सामग्री में सावधानी जरुरी

हवन - पूजन सामग्री में सावधानी जरुरी

हवन और यज्ञ का महत्व सभी जानते हैं l आध्यात्मिक, घर - परिवार, धन, सुख व स्वास्थ्य लाभ के लिए जप व हवन आदि सनातनधर्मी करते रहते हैं ल आजकल जानकारी मिल रही हैं कि
हवन के बाद साँस में तकलीफ, आंख में तकलीफ और कभी कभी त्वचा रोग भी हो रहे हैं। ऐसा बाज़ार में बिक रही नकली हवन और पूजन सामग्री के कारण भी हो रहा है। हवन में प्रायः शुद्ध देशी घी, अगर, तगर ,धार, शहद ,चन्दन की लकड़ी और बुरादा,सप्तमृत्तिका, रोली, सिंदूर, कपूर ,मौली, दूध दही, हल्दी, इत्र ,तिल का तेल, केसर ,भोजपत्र ,नैवेद्य ,गुग्गुल, कमलगट्टा ,जटामांसी आदि का प्रयोग मुख्यतः होता है। इनके अलावा अन्य कई सामग्रियां स्वयं हवनकर्ता को जुटानी पड़ती हैं। पहले लोग हवन सामग्री जंगल, बाग़ - बगीचों व अपने गाँव से ही एकत्र करते थे पर अब इस शहरी युग में हर चीज़ मिलने का एक स्थान बाज़ार ही है।
बाजार में मिलने वाले अधिकांश हवन सामग्री पैकेटों में लकड़ी का बुरादा, झाड़ू का बुरादा, कागज और कूड़ा - करकट की मात्रा अधिक मिलेगी। साथ ही गाजर घास के अंश जो सब जगह आसानी से मिल जाती है और टीबी ,दमा ,नेत्र रोगों को जन्म देती है। ऐसी हवन सामग्री से हवन कर क्या लाभ होगा। आपकी श्रद्धा के बल पर जो मिलना होगा केवल वही मिलेगा बाकि तो जब आप कुड़े से हवन करेंगे और देवता कूड़ा ग्रहण करेंगे तो प्रतिफल क्या होगा आप खुद समझ सकते हैं। ऐसे में लोग भारतीय पूजा पद्धति मंत्र, तंत्र, यंत्र ,ज्योतिष सब पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं। इसी तरह अच्छा घी 450 - 600 रुपए किलो से उपर बिक रहा है वहीँ बाजार में हवन के लिए घी चाहिए तुरंत दुकानदार 150₹- 200 रुपए किलो का पेकेट दिखा देगा। उसपर कहीं न कहीं लिखा मिल जायेगा की "नोट फॉर इंटरनल यूज़ या ह्यूमन यूज़ या नॉन एडिबल।" क्योंकि उनमे पेट्रोलियम जेली और पशुओं की चर्बी होती है घी की बस खुशबु होती है। अब ऐसे घी से हवन कर आप क्या लाभ लेंगे? हवन का एक बेहद महत्वपूर्ण अंग है गुग्गुल। शुद्ध गुग्गुल क्वालिटी अनुसार 1500 से 2500 रूपये प्रति किलो तक मिलता है वहीं आज अधिकतर पंसारियों के पास 700 से 1000 रूपये किलो में मिल रहा है।सुनने में आया है कि मुनाफाखोर बड़ी मात्रा में नकली गूगल तैयार करवाते हैं। इसके लिए विदेशों से मिलने वाले रेजिन नामक केमिकल रसायन का उपयोग किया जाता है। इस केमिकल में समुद्र की गरम रेत, रंग और खुशबू मिलाते हैं। इसे मशीन से टुकड़ों में तोड़ा जाता है। जब हवनकुंड में इसे डाला जाता है तो केमिकल चूंकि ज्वलनशील होता है तो वो जल जाता है और रेत व अन्य चीजें बाकी सामग्रियों के साथ मिल जाती हैं। यही वजह है कि हवन के दौरान गुग्गुल की जो ह्रदय तृप्त करने वाली विशेष सुगंध वाला धुआं आना चाहिए, वैसा नहीं आता, बल्कि इससे छींक, सिर चकराना, चक्कर आना जैसी शिकायतें हो जाती हैं।
अगर बत्ती और धुप बत्ती का मुद्दा तो पुराना हो गया है। अगरबत्ती में जहाँ खुशबूदार बुरादा बांस की डंडी में चिपका होता है वहीँ धूप बत्ती में मोबिल आयल का कचरा, नकली तेलों के ड्रमों के पेंदे में जमा गंदगी और खुशबु दर बुरादा रहता है। ऐसी चीजों की खुशबु से देवता प्रसन्न नहीं होंगे।इसके अलावा धार यानि सूखे फलों के चूर्ण के नाम पर सड़े सूखे फलों का चूर्ण मिलता है । अशुद्ध हवन सामग्री एवं अनुचित मात्रा सर्वथा त्याज्य है।
हवन सामग्री में जितना तिल काम में लिया जाता है उससे आधा चावल और चावल का आधा जौं आदि लिया जाता है l वहीँ अब रेडीमेड पैकेट आ रहे हैं जिसमे तिल ही सबसे कम रहता है क्योंकि यह सबसे महंगा है। ऐसी मान्यता है की ये मात्रा सही न होने पर यज्ञ करने वाला और यजमान दोनों ही गंभीर रोगों के शिकार बनते हैं। शहद में शीरा मिला होता है। चन्दन की लकड़ी और बुरादे के नाम पर नकली एसेंस डाल कर चन्दन के साथ भिगो कर लकड़ियाँ बिकती हैं ।सप्तमृत्तिका यानि सात स्थानों की मिटटी जिसमे हाथी के खुर, घोड़े के खुर ,दीमक की बाम्बी, राजा के घर की ,तीर्थ स्थल की ,गोशाला की और नदी तट की मिटटी चाहिए होती है। अब इसके भी पैकेट आने लगे हैं । अब किस्मे कितना और क्या होगा भगवान ही जाने? कपूर की आजकल टिक्की मिलती है वह आरती ख़तम दीपक शांत पर टिक्की सलामत बची रहती है। असली कपूर की पहचान ही यही थी कि खुला रखा हो तो हवा में उड़ जायेगा और जलेगा तो जलने के बाद कुछ शेष नहीं बचता था। वो कपूर लोग सर में लगाते थे , पेट ठीक ने होने पर एक चुटकी फांक लेते थे ,दांत दर्द में दांत के निचे दबाते थे। पर इस पैकेट वाले कपूर में लिखा होता है "नॉन एडिबल या नॉट फॉर इंटरनल यूज़। केसर की मिलावट के बारे में तो जितना कहें कम है। रोली भी सिंथेटिक आ रही है रंग मिली और सिंदूर भी। आज सुबह तिलक करो तो परसों तक माथे पे निशान बना रहे ऐसी। इतनी पक्की।कलावा भी कच्चे सूत की जगह सिंथेटिक धागे और पक्के सूत का आने लगा है। कमलगट्टा जैसी चीज़ भी अब नकली आने लगी है तो लक्ष्मी माता कहाँ से प्रसन्न हों।
जटामांसी भी नकली आती है उसके जैसी दिखने वाली चिजों में अन्यथा किसी भी पौधे के चूर्ण में एसेंस डालकर जटामांसी चूर्ण के नाम पर बिकता है।तिल का तेल और हल्दी भी मिलावट युक्त आ रही है । अतः आपसे अनुरोध है की किसी भी प्रकार की पूजन और हवन सामग्री किसी भरोसे के स्थान से खरीदें या स्वयं एकत्र करें। ये महंगी अवश्य होगी पर इसके इस्तेमाल के बाद आपको इनका असर भी नज़र आयेगा। अन्यथा नकली कूड़ा करकट केमिकल एसेंस मिली पूजन हवं सामग्री के इस्तेमाल से न सिर्फ आपके धन का नुकसान होगा बल्कि आपकी श्रद्धा और विश्वास को चोट लगेगी। हवन के लिए बाजार से पैकेट बन्द सामग्री लेने के स्थान पर घर में मौजूद चीजों से ही मुख्य सामग्री तैयार कर हवन करें ।
सामान्य हवन की सामग्री: - जौं का दोगुना चावल, उसका दोगुना तिल, जौं सम्भाग शक्कर दोगुना घी होना चाहिए।इसके दशांश में गुग्गुल, सूखे मेवे जैसे बादाम, किशमिश मुनक्का अंजीर , मखाने, चिरौंजी, नारियल और पँचांश में अगर तगर नागकेसर तेजपत्र, तमालपत्र, हल्दी, कचूर, कपूर, दारुहल्दी, केसर, इंद्रजौं, कमलगट्टे, भोजपत्र, जटामासी, चन्दन लौंग इलायची, गिलोय, पित्तपापड़ा, अपामार्ग इत्यादि।
किसी प्रयोजन विशेष हेतु किये गए हवन में सामग्री उसी अनुसार बनेगी चाहे धन, यश स्वास्थ्य हेतु हो या अन्य कार्य। कई हवनों एवं विशेषतः तांत्रिक हवन हेतु कई या कुछ विशेष सामग्रियां निर्दिष्ट रहती हैं वे आप हवन करवाने वाले आचार्य या पुरोहित जी से जान सकते हैं। हवन सामग्री की परख भी उनसे ही करवा लें l
नोट:- मेरे लेख से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची तो तो उनका में क्षमाप्रार्थी हूँ ।बुद्धि जीविंयो के विचार सादर आमंत्रित हैं ।