Thursday, August 23, 2018

माला से बदलें अपनी किस्मत

यूं तो मालाएं कई प्रकार की होती हैं जैसे पूâलों की, रत्नों की, बीजों की एवं धातुओं की आदि। कुछ को हम आभूषण के रूप में धारण करते हैं तो कुछ को मन एवं एकाग्रता के लिए न केवल गले में धारण करते हैं बाqल्क हाथों से जाप करने के प्रयोग में भी लाते हैं। माला आपका भाग्य बदल भी सकती है और भाग्य का नाश भी कर सकती है। आपको माला कौन सी और कब धारण करना चाहिए, यह किसी ज्योतिष से पूछकर ही करना चाहिए। हालांकि हम यहां जिन मालाओं का जिक्र कर रहे हैं उससे आपको कोई नुकसान नहीं होगा। फिर भी आप माला धारण करने से पूर्व किसी ज्योतिष से सलाह अवश्य लें। यदि जीवन में कोई संकट है, धन का अभाव है, सुख-शांति नहीं है तो आप इन विशेष प्रकार की मालाओं के ये उपाय अपनाकर अपना भाग्य बदल सकते हैं। आओ जानते हैं कौन सी माला पहने का क्या है लाभ..
वैजयंती के बीजों की माला
वैजयंती पूâलों का बहुत ही सौभाग्यशाली वृक्ष होता है। मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में वैजयंती के बीजों की माला धारण करना बहुत ही शुभ फलदायक है। इस माला को धारण करने के बाद ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव खत्म हो जाता है, खासकर शनि का दोष समाप्त हो जाता है। इसको धारण करने से नई शक्ति तथा आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। मानसिक शांति प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में मन लगाकर कार्य करता है। इस माला को किसी भी सोमवार अथवा शुक्रवार को गंगाजल या शुद्ध ताजे जल से धोकर धारण करना चाहिए।


कमल के बीजों की माला
कमल के पूâल का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। कमल पुष्प के बीजों की माला को कमल गट्टे की माला कहा जाता है। इस माला को धारण करने वाला शत्रुओं पर विजयी होता है। मां काली की उपासना के लिए काली हल्दी अथवा नीलकमल की माला का प्रयोग करना चाहिए। माता लक्ष्मी की उपासना के लिए कमल गट्टे की माला शुभ मानी गई है। इसको धारण करने से लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अक्षय तृतीया, दीपावली, अक्षय नवमी के दिन इस माला से कनकधारा स्तोत्र का जप करने वाले को धनलाभ के अवसर मिलते रहते हैं।


तुलसी के बीजों की माला
तुलसी के बीजों की माला बहुत ही लाभदायक होती है। तुलसी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। श्यामा तुलसी और रामा तुलसी। श्यामा तुलसी अपने नाम के अनुसार ही श्याम वर्ण की होती है तथा रामा तुलसी हरित वर्ण की होती है। तुलसी और चंदन की माला विष्णु, राम और कृष्ण से संबंधित जपों की सिद्धि के लिए उपयोग में लाई जाती है। इसके लिए मंत्र ‘ॐ विष्णवै नम:’ का जप श्रेष्ठ माना गया है। मांसाहार आदि तामसिक वस्तुओं का सेवन करने वाले लोगों को तुलसी की माला धारण नहीं करनी चाहिए।


श्यामा तुलसी
श्यामा तुलसी की माला धारण करने से विशेष रूप से मानसिक शांति प्राप्त होती है, ईश्वर के प्रति श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, मन में सकारात्मक भावना का विकास होता है, आध्यााqत्मक उन्नति के साथ ही पारिवारिक तथा भौतिक उन्नति होती है। इस माला को शुभ वार, सोम, बुध, बृहस्पतिवार को गंगाजल से शुद्ध करके धारण करना चाहिए।
रामा तुलसी माला
इस माला को धारण करने से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास में वृद्धि तथा सााqत्वक भावनाएं जागृत होती हैं। अपने कर्तव्यपालन के प्रति मदद मिलती है। इस माला को शुभ वार, सोम, गुरु, बुध को गंगाजल से शुद्ध करके धारण करना चाहिए।
तुलसी के बीजों की माला के अन्य लाभ
तुलसी की माला में विद्युत शक्ति होती है। इस माला को पहनने से यश, र्कीित और सौभाग्य बढ़ता है। शालिग्राम पुराण में कहा गया है कि तुलसी की माला भोजन करते समय शरीर पर होने से अनेक यज्ञों का पुण्य मिलता है। जो भी कोई तुलसी की माला पहनकर नहाता है, उसे सारी नदियों में नहाने का पुण्य मिलता है। तुलसी की माला पहनने से बुखार, जुकाम, सिरदर्द, चमड़ी के रोगों में भी लाभ मिलता है। संक्रामक बीमारी और अकाल मौत भी नहीं होती, ऐसी र्धािमक मान्यता है। तुलसी माला पहनने से व्यक्ति की पाचन शक्ति, तेज बुखार, दिमाग की बीमारियों एवं वायु संबंधित अनेक रोगों में लाभ मिलता है।
लाल चंदन की माला
चंदन २ प्रकार के पाए जाते हैं- रक्त एवं श्वेत। चंदन का गुण शीतल है। यदि आपको सर्दी की शिकायत रहती है तो इसे धारण न करें। मां दुर्गा की उपासना रक्त चंदन की माला से करना चाहिए। इससे मंगल ग्रह के दोष भी दूर होते हैं। तुलसी और चंदन की माला विष्णु, राम और कृष्ण से संबंधित जपों की सिद्धि के लिए उपयोग में लाई जाती है। इसके लिए मंत्र ‘ॐ विष्णवै नम:’ का जप श्रेष्ठ माना गया है। चंदन की माला धारण करने से नौकरीपेशा में उन्नति तो होती ही है, सभी लोग ऐसे व्यक्ति से खुश रहते हैं और सभी उसके मित्र बने रहते हैं। ऐसे व्यक्ति को सभी ओर से सहयोग प्राप्त होता रहता है। चंदन कई रोगों को शांत करता है, जैसे तृषा, थकान, रक्तविकार, दस्त, सिरदर्द, वात पित्त, कफ, कृमि और वमन आदि।
सपेâद चंदन की माला
सपेâद चंदन की माला से महासरस्वती, महालक्ष्मी मंत्र, गायत्री मंत्र आदि का जप करना विशेष शुभ फलप्रद होता है। इसके अतिरिक्त इस माला को मानसिक शांति एवं लक्ष्मी प्रााqप्त के लिए भी गले में धारण करने से लाभ होता है।
स्फटिक माला
स्फटिक पत्थर देखने में कांच जैसा प्रतीत होता है। स्फटिक पत्थर से विशेष किंटगदार मनके बनाकर मालाएं भी बनाई जाती हैं, जो अत्यंत आकर्षक होने के बावजूद अल्प मोली होती हैं। स्फटिक की माला धारण करने से शुक्र ग्रह दोष दूर होता है। माता लक्ष्मी की उपासना के लिए स्फटिक की माला शुभ मानी गई है। स्फटिक पंचमुखी ब्रह्मा का स्वरूप है। इसके देवता कालााqग्न हैं। इसके उपयोग से दु:ख और दारिद्र नष्ट होता है। पुण्य का उदय होता है शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है एवं यह पाप का नाशक है। इसका मंत्र है- ‘पंचवक्त्र: स्वयं रुद्र: कालााqग्नर्नाम नामत:।।’ सोमवार को स्फटिक माला धारण करने से मन में पूर्णत: शांति की अनुभूति होती है एवं सिरदर्द नहीं होता। शनिवार को स्फटिक माला धारण करने से रक्त से संबंधित बीमारियों में लाभ होता है। अत्यधिक बुखार होने की ाqस्थति में स्फटिक माला को पानी में धोकर कुछ देर नाभि पर रखने से बुखार कम होता है एवं आराम मिलता है।


मोती, सीप या शंख माला
मोती, शंख या सीप की माला धारण करने वाले को संसार के समस्त प्रकार के लाभ मिलते हैं। इसके पहनने से चन्द्रमा संबंधी सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। यह माला विशेषकर कर्वâ राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी जाती है।
जामुन की गुठली की माला
जामुन की माला प्राय: मकर व वुंâभ राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी गई है। माना जाता है कि इसको धारण करने से शनि से संबंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।
हल्दी की माला
इस माला को हरिद्रा की गांठ से र्नििमत किया जाता है। इस माला का विशेष उपयोग पीतांबरा देवी, बगलामुखी मंत्र के जप-अनुष्ठान में किया जाता है। हल्दी की माला विशेषकर धनु एवं मीन राशि वाले जातकों के लिए उपयोगी मानी गई है। हल्दी की माला भाग्य दोष का हरण करती है। हल्दी की माला धन एवं कामना र्पूित और आरोग्यता के लिए श्रेष्ठ है। ऐसा माना जाता है कि पीलिया से पीड़ित व्यक्ति को हल्दी की माला पहनाने से पीलिया समाप्त हो जाता है। यदि गुरु को बलवान बनाना है तो यह माला धारण करें। इसको धारण करने से गुरु ग्रह संबंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। भगवान गणेश की उपासना के लिए हल्दी और दूब की माला लाभकारी होती है और बृहस्पति के लिए हल्दी या जीया पोताज् की माला का प्रयोग करें। शत्रु बाधा निवारण के लिए इस माला पर बगलामुखी देवी के मंत्र का जाप किया जाता है। बृहस्पति ग्रह के मंत्र का जाप करने से भी शुभ फल प्राप्त होता है।
रुद्राक्ष की माला
यह माला किसी ज्योतिष से पूछकर ही पहनें। यह आपके रक्तचाप को वंâट्रोल या अनवंâट्रोल कर सकती है। आमतौर पर एक से लेकर चौदहमुखी रुद्राक्ष की माला बनाई जाती है। कहते हैं कि २६ दानों की माला सिर पर, ५० की गले में, १६ की बांहों में और १२ की माला मणिबंध में पहनने का विधान है। १०८ दानों की माला पहनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। पद्म पुराण, शिव महापुराण अनुसार इसे पहनने वाले को शिवलोक मिलता है।





शिवपुराण में कहा गया है-
यथा च दृश्यते लोके रुद्राक्ष: फलद: शुभ:।
न तथा दृश्यन्ते अन्या च मालिका परमेश्वरि।।
अर्थात : विश्व में रुद्राक्ष की माला की तरह दूसरी कोई माला फल देने वाली और शुभ नहीं है।
श्रीमद् देवी भागवत में लिखा है-
रुद्राक्ष धारणच्च श्रेष्ठ न किचदपि विद्यते।
अर्थात : विश्व में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर कोई दूसरी चीज नहीं है। रुद्राक्ष की माला श्रद्धा से पहनने वाले इंसान की आध्यााqत्मक तरक्की होती है।

रुद्राक्ष
यह सर्वकल्याणकारी, मंगल प्रदाता एवं आयुष्यवद्र्धक है। पंचमुखी रुद्राक्ष मेष, धनु, मीन, लग्न के जातकों के लिए अत्यंत उपयोगी माना गया है। यह माला सामान्यत: सभी मंत्रों के जप के लिए उपयोगी मानी गई है। रुद्राक्ष की छोटे दानों की माला अधिक शुभ मानी जाती है। जितने बड़े दानों की माला होती है, उतनी ही वह सस्ती भी होती है।
मूंगे की माला
मूंगे के पत्थरों से बनाई गई इस माला से मंगल ग्रह की शांति होती है, विशेषकर मेष और वृाqश्चक राशि के जातकों के लिए उपयोगी मानी गई है। मूंगा मंगल ग्रह का रत्न है अर्थात मूंगा धारण करने से मंगल ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं। मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है तथा रक्त से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं। मूंगा धारण करने से मान-स्वाभिमान में वृद्धि होती है एवं मूंगा धारण करने वाले पर भूत-प्रेत तथा जादू-टोने का असर नहीं होता। मूंगा धारण करने वाले की व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है। मूंगे को सोने या तांबे में पहनना अच्छा माना जाता है।
नवरत्न की माला
ज्योतिष शास्त्र की भारतीय पद्धति में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु को ही मान्यता प्राप्त है। असली नवरत्न माला में अनेक गुण पाए जाते हैं। इसे धारण करने मात्र से अनेक सफलता एवं सिद्धियां प्राप्त होती हैं। प्रत्येक ग्रह को नवग्रहों में से किसी एक ग्रह विशेष से संबद्ध किया गया है। इस नवरत्न माला में वैज्ञानिक आधार पर निम्न तााqत्वक सरंचना पाई जाती हैं, जैसे एल्युमीनियम, ऑक्सीजन, क्रोमियम तथा लौह, वैâाqल्शयम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, बैरीलियम, मिनयिम, फ्लोरीन, हाइड्रोाqक्सल, जिक्रोनियम आदि तााqत्वक संरचनाएं पाई जाती हैं। इस माला में सारे ग्रहों के रत्नों को समाहित किया गया है। इस माला को धारण करने से अनेक लाभ हैं, जैसे यश, सम्मान, वैभव, भौतिक समृद्धि में लाभ के अलावा कफ रोग, शीत रोग, ज्वर रोग आदि रोगों में भी लाभ मिलता है।

Saturday, August 4, 2018

सुबह बोलें यह शिव मंत्र, तो मिलेगी उम्मीदों से ज्यादा सफलता

सफलता के लिए, वक्त, साधन व धन के सही उपयोग के साथ इच्छाशक्ति और मनोबल का सकारात्मक होना भी निर्णायक होता है। धार्मिक उपायों की बात करें तो भगवान शिव की भक्ति न केवल मन को ऊर्जावान, मजबूत बनाने वाली होती है बल्कि संकल्प को पूरा करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाली भी मानी गई है। 

शिव चरित्र, जीवन में छुपे वैभव, वैराग्य व संहार के साथ कल्याण का भाव जीवन के यथार्थ से जोड़कर रखने की सीख देता है। 

ऐसे ही कल्याणकारी देवता भगवान शिव की पूजा के लिए शास्त्रों में बताए एक विशेष मंत्र का स्मरण हर रोज सुबह खासतौर पर सोमवार या शिव तिथियों जैसे अष्टमी आदि पर किया जाए तो इसके प्रभाव से भरपूर मानसिक शक्ति मिलने के साथ जीवन तनाव, दबाव व परेशानियों से मुक्त रहता है और उम्मीदों से भी ज्यादा सफलता मिलती है। 


जानिए यह विशेष शिव मंत्र -

- सुबह शिवलिंग या शिव की मूर्ति का पवित्र जल स्नान कराकर चंदन, अक्षत व बिल्वपत्र अर्पित करें। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखे शिव मंत्र का ध्यान करें - 

शान्ताकारं शिखरशयनं नीलकण्ठं सुरेशं। 

विश्वाधारं स्फटिकसदृशं शुभ्रवर्णं शुभाङ्गम्।।

गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।

वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

इन मंत्रों से करें पार्थिव शिवलिंग की पूजा

शिव उपासना से कामनाओं की पूर्ति के लिए पार्थिव शिवलिंग पूजा बहुत ही शुभ मानी गई है। खासतौर पर सोमवार के दिन पार्थिव शिवलिंग पूजा मनचाहे सुख देने वाली मानी गई है। जानते हैं पार्थिव शिवलिंग पूजा की सरल विधि -


- सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहन किसी पवित्र जगह की मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग बनाए। शमी या पीपल के पेड़ की जड़ की मिट्टी या गंगा नदी  की मिट्टी बहुत ही पवित्र मानी जाती है।

- ऊँ शूलपाणये नम: यह मंत्र बोलकर शिवलिंग की प्रतिष्ठा करें।

- भगवान शिव का ध्यान कर पूजन शुरु करें। विशेष मंत्र न याद हो तो नाम मंत्र बोलकर ही पूजा करें।

- ॐ शिवाय नम:। ॐ महेश्वराय नम:। ॐ शम्भवे नम: यह मंत्र बोलकर पाद्य, अर्घ्य और आचमन करें।

- पार्थिव शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराएं।

- पंचामृत स्नान के बाद नीचे लिखे सरल मंत्रों से पूजा सामग्री अर्पित कर पूजा करें -

- ॐ ज्येष्ठाय नम:। वस्त्र अर्पित करें।

- ॐ रुद्राय नम:। जनेऊ अर्पित करें।

- ॐ कपर्दिने नम:। फिर से आचमन करें।

- ॐ कालाय नम:। गंध अर्पित करें।

- ॐ कलविकरणाय नम:। अक्षत चढ़ाए।

- ॐ बल विकरणाय नम:। बिल्वपत्र, धतुरा समर्पित करें।

- ॐ बलाय नम:। धूप लगाएं।

- ॐ बल प्रमथनाय नम:। दीप प्रज्जवलित करें।

- ॐ नीलकंठाय नम:। नैवेद्यं लगाएं।

- ॐ भवाय नम:। मौसमी फल चढ़ाएं।

- ॐ मनोन्मनाय नम:। आचमन करें।

- ॐ शम्भवे नम:। सुपारी चढाएं।

- ॐ शिव प्रियाय नम:। दक्षिणा अर्पित करें।

- ॐ शम्भवे नम:। नमस्कार करें।

- ॐ पार्थिवेश्वराय नम: बोलकर पुष्प अर्पित कर क्षमा मांग कामनापूर्ति की प्रार्थना करें।

पूजा के दौरान पार्थिव शिवलिंग की पत्र-फूलों से ढंककर पूजा करें। जिससे लिंग की मिट्टी का क्षरण नहीं होता है।

Friday, August 3, 2018

जानिए, किस चीज़ के शिवलिंग की पूजा का क्या होता है शुभ प्रभाव?

शिवलिंग, शिव का निराकार स्वरूप है। पौराणिक मान्यता है कि शिवलिंग पूजा उस शक्ति की उपासना है, जो सृष्टि रचना का कारण है। शिवलिंग व अरघा भी शिव-शक्ति का सामूहिक स्वरूप होकर सृजन या उत्पत्ति के प्रतीक माने जाते हैं, जो अर्द्धनारीश्वर रूप में भी पूजनीय है। 

यही कारण है कि कण-कण और हर जीव में शिव मानकर अलग-अलग पदार्थों के शिवलिंग की उपासना प्रदोष, चतुर्दशी, अष्टमी या सोमवार की पुण्यतिथियों पर सांसारिक इच्छाओं को जल्द पूरा करने वाली मानी गई है। जानिए, किस चीज़ का शिवलिंग कौन-सी कामना सिद्ध करता है - 

- हवन-यज्ञ की विभूति यानी भस्म से बने शिवलिंग मनचाही कामना सिद्ध करते हैं।

- अक्षत, गेंहू या जौ के आटे से बने शिवलिंग की पूजा पारिवारिक सुख-शांति व संतान की कामना पूरी करती है। 

- दही का जल निकालकर निथारकर बने शिवलिंग धन कामना पूरी करते हैं। 

- पीपल की लकड़ी से बने शिवलिंग अभाव व दरिद्रता का नाश करते हैं। 

- चंदन-कस्तूरी से बने शिवलिंग ऐश्वर्य से भरे जीवन की कामना पूरी करते हैं। 

- रोगमुक्ति के लिए मिश्री या शक्कर के बने शिवलिंग मंगलकारी होते हैं। 

- मकान या संपत्ति की चाहत पूरी करने के लिए फूलों से बने शिवलिंग की पूजा करें। 

- लहसुनिया के शिवलिंग शत्रु बाधा दूर करते हैं। 

- मृत्यु व काल का भय दूर्वा दल से बने शिवलिंग पूजा से दूर होता है। 

- चांदी, सोने या मोती से बने शिवलिंग क्रमश: पैसा, खुशहाली व भाग्य वृद्धि करते हैं। 

- स्फटिक शिवलिंग की पूजा हर कामना और कार्य सिद्धि करने वाली मानी गई है।

Thursday, August 2, 2018

महिमा पारद शिवलिंग की

ज्योतिष की दृष्टि से कर्क, वृषभ, तुला, मिथुन और कन्या राशि के जातकों को इसकी पूजा से विशेष फल प्राप्त होते हैं। सामान्य रूप से इसके पूजन से विद्या,धन, ग्रहदोष निवारण, कार्य में आने वाली बाधाएं और ऊपरी बाधाएं दूर होकर सुख -समृद्धि प्राप्त होती है।


सृष्टि के प्रारंभ से ही आशुतोष भगवान सदाशिव की आराधना निराकार और साकार दोनों ही रूपों में की जाती रही है। मनुष्य के अलावा शिव आराधना देवता,दानव, किन्नर,गंधर्व, भूत-प्रेत पिशाचादि इतर योनि के जीव भी करते हैं। शिवभक्त पुष्पदंत के अनुसार महेशान्नापरोदेवो यानी भगवान महेश से बढ़कर कोई अन्य देव नहीं है इसलिए उन्हें महादेव कहा गया है। इनकी लिंग रूप में आराधना युगों-युगों से की जाती रही है। ये लिंग अनेक प्रकार की धातु, मणि, मिट्टी और पाषाण से निर्मित होते हैं हैं। कुछ शिवलिंग स्वयंभू होते हैं तथा कुछ ज्योर्तिलिंग होते हैं। इन सभी प्रकार के शिवलिंगों की आराधना का स्थान और समय के अनुसार अपना अपना महžव है। किंतु इन सबमें सर्वोच्च शिवलिंग पारद धातु से निर्मित माना गया है। रसेन्द्र पुराण में कहा गया है-बद्ध: साक्षात्सदाशिव: यानी दोष हीन बद्ध पारा साक्षात् सदाशिव का ही रूप है। इसलिए महाशिवरात्रि सहित प्रत्येक माह में पड़ने वाल प्रदोष व्रत पर इसकी उपासना विशेष पुण्यदायिनी होती है।

इस शिवलिंग में शिव-शक्ति लक्ष्मी, कुबेर सहित तैंतीस कोटि देवता का निवास होता है। इसे घर में स्थापित करने पर भूमिदोष,पितृदोष,कुल देवी देवता के दोष और नवग्रह से होने वाली पीड़ा से मुक्ति मिलती है। पारद शिवलिंग को रसलिंग भी कहा जाता है। भगवान शंकर के जितने नाम कहे गए हैं उतने ही नाम पारद के भी बतलाए हैं। बद्ध पारद और भगवान शिव में कोई अन्तर नहीं है। इनका ध्यान करने से मन की चंचलता शांत होती है। संपूर्ण त्रैलोक्य में मन को शांत और नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय रसलिंग का पूजन और दर्शन है। इस लिंग पूजा के पांच प्रकार बताए गए हैं। भक्षण ( पारद से निर्मित भस्मों से रोगोपचार), स्पर्शन ( रसलिंग को स्पर्श करना), दान ( रसलिंग का दान करना),ध्यान ( इसके दिव्य स्वरूप का ध्यान करना) तथा परिपूजन ( षोडशोपचारादि पूजन करना)। इनमें भक्षण को छोड़कर शेष चार प्रकार की अर्चना सभी के द्वारा की जा सकती है।
पारद में एक अरब गुण होते हैं। इसके दर्शन,स्पर्श और पूजन से मिलने वाले फल के बारे में कहा गया है कि जो मनुष्य भक्ति पूर्वक रसलिंग बनाकर पूजन करता है वह तीनों लोकों में जितने शिवलिंग हैं,उन सब की पूजा के फल को प्राप्त होता है। स्वयंभू सहस्रों शिवलिंगों की पूजा करने से जो फल प्राप्त होता है,उससे करोड़ गुना फल पारद शिवलिंग की पूजा से प्राप्त होता है।

केदारादीनि लिंगानि पृथिव्यां यानि कानिचित।
तानि दृष्टवा य यत्पुण्यं तत्पुण्यं रसदर्शनात्।।

यानी इस पृथ्वी पर केदारनाथ से लेकर जितने भी शिवलिंग हैं उन सबके दर्शन करने से जो पुण्य प्राप्त होता है,वह पुण्य केवल पारदशिवलिंग के दर्शन मात्र से होता है। अन्य स्थान पर कहा गया है कि हे पार्वती! जो मनुष्य ह्वदय कमल में स्थित पारद का स्मरण करता है,वह अनेक जन्मों के संचित पापों से तत्काल छूट जाता है। पारद शिवलिंग की महिमा का वर्णन इन शब्दों मे पढ़कर स्वत: श्रद्धा जाग्रत हो जाती है- जो पुण्य एक सौ अश्वमेध यज्ञ करने से ,करोड़ो गाएं दान करने से, एक हजार तोला स्वर्ण दान करने से तथा सब तीर्थो में अभिषेक करने से होता है, वही पुण्य पारद शिवलिंग के दर्शन मात्र से होता है।

सर्वसिद्धिप्रदं देविं सर्वकामफलप्रदम्।
स्मरणं रस राजस्य सर्वोपद्रवनाशनम्।।

हे देवि ! रसराज के स्मरण मात्र से सर्वप्रकार की सिद्धि, सब कार्यो में सफलता तथा सभी उपद्रवों का नाश होता है।

सप्तद्वीपे धरण्यांच पाताले गगने दिवि।
यान्यर्चयन्ति लिंगानि तत्पुण्यं रस पूजया।।

सातों द्वीपों,पृथ्वी,पाताल,गगन एवं दिशाओं में स्थित शिवलिंगों के पूजन से जो पुण्य होता है,वही पुण्य केवल पारदशिवलिंग की पूजा से प्राप्त होता है।

पूजन विघि
महाशिवरात्रि के दिन दोपहर में जिस समय अभिजित मुहूर्त हो, दस संस्कारों से संस्कारित पारद धातु का अंगुष्ठ प्रमाण का शिवलिंग बनवाकर अपने पूजा कक्ष में ईशान्य कोण में स्थापित करें। लिंग का षोडषोपचार पूजन से करने अथवा करवाने के बाद रूद्राक्ष की माला से ऊं पारदेश्वराय नम: इस मंत्र की आवृत्ति एक हजार आठ बार करें। इसके बाद प्रतिदिन शिवलिंग का सावधानीपूर्वक स्त्रान, धूप,दीप, नैवेद्य सहित अर्चना करते हुए एक पुष्प अर्पण करें। उपर्युक्त मंत्र की एक सौ आठ आवृत्ति कम से कम अवश्य करें। ज्योतिष की दृष्टि से कर्क, वृषभ, तुला, मिथुन और कन्या राशि के जातकों को इसकी पूजा से विशेष फल प्राप्त होते हैं। सामान्य रूप से इसके पूजन से विद्या,धन, ग्रहदोष निवारण, कार्य में आने वाली बाधाएं और ऊपरी बाधाएं दूर होकर सुख -समृद्धि प्राप्त होती है। यह आराधना एक साल तक निर्बाध रूप से करते रहने पर साक्षात शिव की कृपा होती है।

ज्योतिर्विद् डॉ. गोविन्द माहेश्वरी,
संविदा प्राध्यापक, ज्योतिर्विज्ञान अध्ययनशाला,
विक्रमादित्य विश्वविद्यालय, उज्जैन