Friday, February 8, 2019

नीलम (नीलमणि बदलता है भाग्य)

नीलमणि पर्वत पर नीलम बहुत मिलता है। इस चराचर जगत के रत्नों के संसार में भगवान भी शनिदेव का रत्न नीलम श्रेष्ट-ए-चमत्कारिक माना गया है। इसे पहनने के बाद यह जिसके लिए शुभ हो जाए उसे राजा और जिसके लिए अशुभ हो जाए उसे रंक बना देता है। औद्योगिक जगत और फिल्मी जगत की बड़ी हस्तियों ने नीलम धारण कर रखा है। विश्व का सबसे बड़ा नीलम 888 कैरेट का श्री लंका में है। जिसकी कीमत करीब 14 करोड़ आंकी गई है। हाथ के किसी भी पर्वत से निकली हुई रेखा शनि पर्वत पर पहुंच कर भाग्य रेखा बन जाती है। क्योंकि मृत्युलोक का दण्डाधिकारी भी कहा गया है इसलिए सबसे बड़ी ऊंगली, मध्यमा पर उनका वास है। मध्यमा ऊंगली में नीलम पहनने का अर्थ शनिदेव के गले में नीलमणि की माला पहनाने जैसा है। नीलम नीला, लाल (खूनी नीलम) श्वेत, हरा , बैंगनी आसमनी आदि रंगों में पाया जाता है। सर्वश्रेष्ट नीलम भारत के कश्मीर में मिलते हैं। यह विशुद्ध रंग मोर के गर्दन के रंग का होता है। भारत के अतिरिक्त वर्मा, श्रीलंका, अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि में भी नीलम मिलता है।

नीलम के प्रकार - भारतीय ग्रंथों के अनुसार नीलम दो प्रकार का होता है।
1- जलनील
2- इन्द्रनील

जिस लघु नीलम के भीतर सफेदी हो और चारों और नीतियां हो उसे जलनील कहते हैं। जिस नीलम के अन्दर श्याम आया हो बाहर नीतिमा भारी हो, वह इन्द्रजील कहलाता है। यह नीले और लाल रंग का मिश्रम अर्थात् बैंगनी रंग का होता है।



उत्तम नीलम के गुण- श्रेष्ठ नीलम चिकना, चमकीला, साफ व पारदर्शी होता है। इसमें पतली-पतली नीली रश्मियां निकलती हैं। शुद्ध नीलम की पहचान- उत्तम नीलम के पास यदि तिनका लाया जाए तो वह उससे चिपक जाता है। नीलम दूध में रखने पर दूध नीला दिखने लगता है

दोषयुक्त नीलम - दोषयुक्त नीलम दुष्प्रभाव डालता है। अतः ऐसे नीलम जिसमें गषा हो, जाल हो चमक न हो, जिसमें लाल रंग के छोटे-छोटे बिन्दु हों, जिसमें सफेद लकीरें हों, दूधिया रंग का हो , लेने से बचना चाहिए। नीलम के उपरत्न नीली और जमुनिया है। नीली यह नीले रंग का हल्का रक्तिम वाला होता है। इसमें चमक होती है। जमुनिया पक्के जामुन के रंग का होता है। यह चिकना, साफ एवं पारदर्शी होता है।

नीलम को कौन धारण कर सकता है - यह रत्न धारण करते समय विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। इसलिए किसी योग्य ज्योतिष को जन्मपत्री का विश्लेषण करने के पश्चात् ही नीलम रत्न पहने। शौकिया न पहने, नुकसानदायक हो सकता है।

मेष लग्न के लिए शनि कर्म भाव और लाभ भाव का स्वामी माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनना चाहिए। वृष लग्न, तुला लग्न के लिए शनि योगकारक माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनने से विशेष लाभ होगा।

मिथुन लग्न के लिए अष्टमेश होने के साथ त्रिकोण का स्वामी भी होने से इस राशि के लिए शुभ माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनने से लाभ होगा। स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।

कर्क लग्न और सिंह लग्न या कर्क राशि और सिंह राशि वाले जातकों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। दोनों ही लग्न या राशि के स्वामी शनि के मित्र नहीं है। पहनने की इच्छा हो तो परीक्षण के बाद ही पहनें।

कन्या लग्न- कन्या लग्न या राशि वाले शनि की महादशा में नीलम पहने तो अवश्य लाभ होगा।

वृश्चिक लग्न - वृश्चिक लग्न या राशि वालों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। ध्यान रहे यदि शनि 6,8,12 भाव में हो तो नीलम पहनने से बचें। यदि शनि पंचम, नवम, दशम एकादश भाव में हो तो शनि की महादशा में धारण कर सकते हैं।

धनु लग्न - धनु लग्न वाले जातकों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। अगर जरूरी है तो शनि की महादशा में पीताम्बर नीलम पहन सकते हैं। मकर एवं कुम्भ लग्न या राशि वालों को नीलम हमेशा पहनना चाहिए।

मीन लग्न वाले जातकों को प्रयत्न करने पीताम्बर नीलम ही पहनें शनि यदि लग्न दूसरे, चतुर्थ, पंचम, नवम, एकादश में हो तो शनि की महादशा में नीलम पहनने से आर्थिक लाभ संभव है।

इस प्रकार नीलम चार लग्न या राशि, (वृष,तुला,मकर, कुंभ) में उत्पन्न जातक जीवन पर्यत्न तक धारण कर सकते हैं।

नीलम का प्रभाव - वैसे तो शनि देव मंद गति गामी ग्रह है। परन्तु उनका रत्न नीलम सभी रत्नों में शीघ्र प्रभाव दिखाने वाला है। यदि नीलम धारण करने के बाद मन व्याकुल हो जाए, बुरे स्वप्न आने लगे या कोई अरिष्ट हो जाए तो नीलम नहीं पहनना चाहिए।

नीलम द्वारा रोगोपचार - नीलम का मुख्य प्रभाव शरीर के संचालन पर पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार नीलम तिक्त रस वाला है। जो वात, पित, कफ वायु के कष्टों को दूर करता है। पागलपन की बीमारी में नीलम की भस्म उत्तम औषधि मानी गई है। मिरगी, लकवा, स्नायु विकार गंजापन से बचाव में यह लाभकारी है। आयुर्वेद के अनुसार खांसी, दमा, रक्तविकार, उल्टी बवासीर, विषमज्वर आदि में लाभदायक है।

नीलम धारण करने का तरीका - नीलम को शनि के नक्षत्र पुस्य, अनुराधा, उत्तराभाद्वपद में, धारण को अगर ये नक्षत्र न हो तो वृष तुला, मकर लग्न के नक्षत्रों में भी पहन सकते हैं। नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु में जड़वाकर पहनने से पूर्व ऊँ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप अवश्य करें। नीलम का वजन चार रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए। 5 रत्ती या 7 रत्ती का ही लेना चाहिए। जो व्यक्ति नीलम या उपरत्न न ले सकता हो वह लाजावर्त, नीला गार्नेट, नीला स्पाईनल आदि धारण कर सकते हैं।

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