Wednesday, September 12, 2018

शिवलिंग पूजा का महत्व क्या हैं?




शिवमहा पुराण के सृष्टिखंड अध्याय १२ श्लोक ८२ से ८६ में ब्रह्मा जी के पुत्र संतकुमार जी वेदव्यास जी को उपदेश देते हुए कहते हैं, हर गृहस्थ मनुष्य को अपने सद्दगुरू से विधिवत दीक्षा लेकर पंचदेवों (गणेश, सूर्य, विष्णु, दुर्गा, शिव) की प्रतिमाओं का नित्य पूजन करना चाहिए। क्योंकि शिव ही सबके मूल हैं, इस लिये मूल (शिव) को सींचने से सभी देवता तृत्प हो जाते हैं परन्तु सभी देवताओं को प्रसन्न करने पर भी शिव प्रसन्न नहीं होते। यह रहस्य केवल और केवल सद्दगुरू कि शरण में रहने वाले व्यक्ति ही जान सकते हैं।
  • सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण, निराकार शिव से प्रार्थना की, प्रभु आप कैसे प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव बोले मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो। जब किसी प्रकार का संकट या दु:ख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दु:खों का नाश हो जाता है।(शिवमहापुराण सृष्टिखंड )
  • जब देवर्षि नारद ने भगवान श्री विष्णु को शाप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि उपाय सुझाये। (शिवमहापुराण सृष्टिखंड )
  • एक बार सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी सभी देवताओं को लेकर क्षीर सागर में श्री विष्णु के पास परम तत्व जानने के लिए पहोच गये। श्री विष्णु ने सभी को शिवलिंग की पूजा करने का सुझाव दिया और विश्वकर्मा को बुलाकर देवताओं के अनुसार अलग-अलग द्रव्य पदार्थ के शिवलिंग बनाकर देने का आदेश देकर सभी को विधिवत पूजा से अवगत करवाया। (शिवमहापुराण सृष्टिखंड )
  • ब्रह्मा जी ने देवर्षि नारद को शिवलिंग की पूजा की महिमा का उपदेश देते हुवे कहा। इसी उपदेश से जो ग्रंथ कि रचना हुई वो शिव महापुराण हैं। माता पार्वती के अत्यन्त आग्रह से, जनकल्याण के लिए निर्गुण, निराकार शिव ने सौ करोड़ श्लोकों में शिवमहापुराण की रचना कि। जो चारों वेद और अन्य सभी पुराण शिवमहापुराण की तुलना में नहीं आ सकते। भगवान शिव की आज्ञा पाकर विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने शिवमहापुराण को २४६७२ श्लोकों में संक्षिप्त किया हैं।
  • जब पाण्ड़व वनवास में थे , तब कपट से दुर्योधन पाण्ड़वों को दुर्वासा ऋषि को भेजकर तथा मूक नामक राक्षस को भेजकर कष्ट देता था। तब पाण्ड़वों ने श्री कृष्ण से दुर्योधन के दुर्व्यवहार से अवगत कराया और उससे छुटकारा पाने का मार्ग पूछा। तब श्री कृष्ण ने पाण्ड़वों को भगवान शिव की पूजा करने के लिए सलाह दी और कहा मैंने स्वयंने अपने सभी मनोरथों को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की पूजा की हैं और आज भी कर रहा हुं। आप लोग भी करो। वेदव्यासजी ने भी पाण्ड़वों को भगवान शिव की पूजा का उपदेश दिया। हिमालय से लेकर पाण्ड़व विश्व के हर कोने में जहां भी गये उन सभी स्थानो पर शिवलिंग कि स्थापना कर पूजा अर्चना करने का वर्णन शास्त्रों में मिलता हैं।
शिव महापुराण
सृष्टिखंड अध्याय ११ श्लोक १२ से १५ में शिव पूजा से प्राप्त होने वाले सुखों का वर्णन इस प्रकार हैं:
दरिद्रता, रोग कष्ट, शत्रु पीड़ा एवं चारों प्रकार के पाप तभी तक कष्ट देता है, जब तक भगवान शिव की पूजा नहीं की जाती। महादेव का पूजन कर लेने पर सभी प्रकार के दु:खोका शमन हो जाता हैं। सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते हैं एवं इससे सभी मनोकामनाएं सिद्ध हो जाती हैं।(शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय- ११ श्लोक१२ से १५

सुबह बोलें यह देवी मंत्र..तन-मन-धन की कमजोरी होगी दूर



सांसारिक जीवन में तन, मन हो या धन के सुख तभी संभव हैं, जब इन तीनों विषयों से जुड़े संयम, अनुशासन और प्रबंधन को कायम रखा जाए। अन्यथा तन की कमजोरी रोग, मन का भटकाव कलह और धन का अभाव दरिद्रता का कारण बन जाता है।

तन, मन व वैभव रूपी ऐसे सुख बंटोरने के लिए ही धार्मिक परंपराओं में गुप्त नवरात्रि (24 जनवरी से 1 फरवरी) की छठी रात मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। पुराणों के मुताबिक जगत कल्याण हेतु कात्यायन ऋषि के घोर तप से प्रसन्न देवी ने उनकी पुत्री रूप में जन्म लिया और कात्यायनी नाम से जगत पूजनीय हुई।

मां कात्यायनी का सिंह पर विराजित चार भुजाधारी दिव्य स्वरूप है। देवी के चार हाथों में वर मुद्रा, अभय मुद्रा, कमल का फूल और खड्ग होता है। मां कात्याययनी की उपासना निर्भय और निरोगी कर सुख-संपन्न बनानी वाली मानी गई है।

इस दिन खासतौर पर सुबह नवदुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की घर या देवी मंदिर में जाकर गंध, अक्षत, फूल, नैवेद्य चढ़ाकर धूप-दीप जलाने के बाद नीचे लिखे देवी मंत्र का भय, संशय, अभाव, रोग से मुक्ति की कामना के साथ स्मरण करें -

सुखानन्दकरीं शान्तां सर्वदेवैर्नमस्कृताम्।

सर्वभूतात्मिकां देवीं शाम्भवीं प्रणमाम्यहम्।।

सरल अर्थ है - शांत स्वरूप, सभी देवताओं द्वारा पूजनीय, सारे जगत की आत्मा, सर्वव्यापी, सारे सुख और आनंद, भुक्ति और मुक्ति देने वाली मां शाम्भवी को मेरा प्रणाम हैं।