Friday, February 8, 2019

शिवलिंग की हक़ीक़त क्या है ?

परमेश्वर ही सच्चा शिव अर्थात कल्याणकारी है । जो प्राणी उसकी शरण में आ जाता है , वह भी शिवत्व को प्राप्त करके स्वयं भी शिव रूप हो जाता है । इसी को अलंकारिक भाषा में भक्त का भगवान से एकाकार होना कहा जाता है ।भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।

इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।

सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।

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