Sunday, July 6, 2025

हमें हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, क्योंकि...

कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।

हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।


यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।\


हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है जानें कैसे प्रभु श्री राम हनुमान जी के आदर्श देवता हैं। हनुमान जी जहां राम के अनन्य भक्त हैं, वहां राम भक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमान जी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान जी ने श्री राम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है।


हनुमान जी की कृपा पाने और सभी परेशानियों से छुटकारा पाने का एक अचूक उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले भक्तों को दुख, रोग, पैसों की तंगी और भूत-प्रेत आदि से संबंधित कोई परेशानी नहीं होती और उनकी किस्मत का तारा सदैव चमकता रहता है।


कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं। हनुमान जी प्रभु श्री राम के श्रेष्ठ भक्तों की श्रेणी में आते हैं। हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ऐसी महान कृति है जिसको पढ़ने और सुनने से बल बुद्धि और विद्या की जागृती होती है।


हनुमान चालीसा के प्रत्येक दोहे से हमें कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है। हनुमान चालीसा कवच की तरह मनुष्य की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शक्तियों से रक्षा करती है। बल, विद्या, बुद्घि की जरूरत प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में पग पग पर पड़ती रहती है। हनुमान चालीसा एक रामबाण उपाय है। 


ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान जी की पूजा का विधान है। शनि देव को उन्होंने युद्ध में हराया था। शनि ने इनको आशीर्वाद दिया था कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करेगा उसे शनि का कष्ट नहीं होगा। 

हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। मंगलवार को स्नान उपरांत अपने घर के पूजा स्थान में हनुमान जी के श्री विग्रह के सामने घी का दीपक जलाएं और हनुमान चालीसा का कम से कम 11 बार पाठ करें। ऐसा 11 मंगलवार नियमित रूप से करें। पूजा के बाद गुड़ व चने गरीबों को, गाय या बंदर को खिला दें। ऐसा करने से जीवन की समस्त समस्याओं एवं कष्टों से मुक्ति तो प्राप्त होती ही है साथ ही घर में धन-संपत्ति के भण्डार भरे रहते हैं।


स्मरण रहें हनुमान चालीसा के 11 पाठ लगातार, बिना रुके किए जाने चाहिए। इस साधना में समय अधिक लगता है। अत: इस बात का विशेष ध्यान रखें यह पूजा शांति पूर्ण ढंग से की जानी चाहिए। किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न करें। हनुमान चालीसा के पाठ की संख्या ध्यान रखने के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 

        


श्री हनुमान चालीसा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥


॥चौपाई॥


श्री हनुमान चालीसा जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।

अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।

कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।

काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥

सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।

तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।

राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।

राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।

बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।

रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥

लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।

नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।

राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।

लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानु ।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।

सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥

सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।

तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥

आपन तेज सह्मारो आपै ।

तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।

महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।

तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।

सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥

चारों जुग परताप तुह्मारा ।

है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।

असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।

अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥

राम रसायन तुह्मरे पासा ।

सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

तुह्मरे भजन राम को पावै ।

जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई ।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥ 

जो सत बार पाठ कर कोई ।

छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।

होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥

॥दोहा॥


पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

सुबह बोलें यह शिव मंत्र, तो मिलेगी उम्मीदों से ज्यादा सफलता

सफलता के लिए, वक्त, साधन व धन के सही उपयोग के साथ इच्छाशक्ति और मनोबल का सकारात्मक होना भी निर्णायक होता है। धार्मिक उपायों की बात करें तो भगवान शिव की भक्ति न केवल मन को ऊर्जावान, मजबूत बनाने वाली होती है बल्कि संकल्प को पूरा करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाली भी मानी गई है। 

शिव चरित्र, जीवन में छुपे वैभव, वैराग्य व संहार के साथ कल्याण का भाव जीवन के यथार्थ से जोड़कर रखने की सीख देता है। 

ऐसे ही कल्याणकारी देवता भगवान शिव की पूजा के लिए शास्त्रों में बताए एक विशेष मंत्र का स्मरण हर रोज सुबह खासतौर पर सोमवार या शिव तिथियों जैसे अष्टमी आदि पर किया जाए तो इसके प्रभाव से भरपूर मानसिक शक्ति मिलने के साथ जीवन तनाव, दबाव व परेशानियों से मुक्त रहता है और उम्मीदों से भी ज्यादा सफलता मिलती है। 


जानिए यह विशेष शिव मंत्र -

- सुबह शिवलिंग या शिव की मूर्ति का पवित्र जल स्नान कराकर चंदन, अक्षत व बिल्वपत्र अर्पित करें। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखे शिव मंत्र का ध्यान करें - 

शान्ताकारं शिखरशयनं नीलकण्ठं सुरेशं। 

विश्वाधारं स्फटिकसदृशं शुभ्रवर्णं शुभाङ्गम्।।

गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।

वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

Saturday, July 5, 2025

नीलम (नीलमणि बदलता है भाग्य)

नीलमणि पर्वत पर नीलम बहुत मिलता है। इस चराचर जगत के रत्नों के संसार में भगवान भी शनिदेव का रत्न नीलम श्रेष्ट-ए-चमत्कारिक माना गया है। इसे पहनने के बाद यह जिसके लिए शुभ हो जाए उसे राजा और जिसके लिए अशुभ हो जाए उसे रंक बना देता है। औद्योगिक जगत और फिल्मी जगत की बड़ी हस्तियों ने नीलम धारण कर रखा है। विश्व का सबसे बड़ा नीलम 888 कैरेट का श्री लंका में है। जिसकी कीमत करीब 14 करोड़ आंकी गई है। हाथ के किसी भी पर्वत से निकली हुई रेखा शनि पर्वत पर पहुंच कर भाग्य रेखा बन जाती है। क्योंकि मृत्युलोक का दण्डाधिकारी भी कहा गया है इसलिए सबसे बड़ी ऊंगली, मध्यमा पर उनका वास है। मध्यमा ऊंगली में नीलम पहनने का अर्थ शनिदेव के गले में नीलमणि की माला पहनाने जैसा है। नीलम नीला, लाल (खूनी नीलम) श्वेत, हरा , बैंगनी आसमनी आदि रंगों में पाया जाता है। सर्वश्रेष्ट नीलम भारत के कश्मीर में मिलते हैं। यह विशुद्ध रंग मोर के गर्दन के रंग का होता है। भारत के अतिरिक्त वर्मा, श्रीलंका, अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि में भी नीलम मिलता है।

नीलम के प्रकार - भारतीय ग्रंथों के अनुसार नीलम दो प्रकार का होता है।
1- जलनील
2- इन्द्रनील

जिस लघु नीलम के भीतर सफेदी हो और चारों और नीतियां हो उसे जलनील कहते हैं। जिस नीलम के अन्दर श्याम आया हो बाहर नीतिमा भारी हो, वह इन्द्रजील कहलाता है। यह नीले और लाल रंग का मिश्रम अर्थात् बैंगनी रंग का होता है।



उत्तम नीलम के गुण- श्रेष्ठ नीलम चिकना, चमकीला, साफ व पारदर्शी होता है। इसमें पतली-पतली नीली रश्मियां निकलती हैं। शुद्ध नीलम की पहचान- उत्तम नीलम के पास यदि तिनका लाया जाए तो वह उससे चिपक जाता है। नीलम दूध में रखने पर दूध नीला दिखने लगता है

दोषयुक्त नीलम - दोषयुक्त नीलम दुष्प्रभाव डालता है। अतः ऐसे नीलम जिसमें गषा हो, जाल हो चमक न हो, जिसमें लाल रंग के छोटे-छोटे बिन्दु हों, जिसमें सफेद लकीरें हों, दूधिया रंग का हो , लेने से बचना चाहिए। नीलम के उपरत्न नीली और जमुनिया है। नीली यह नीले रंग का हल्का रक्तिम वाला होता है। इसमें चमक होती है। जमुनिया पक्के जामुन के रंग का होता है। यह चिकना, साफ एवं पारदर्शी होता है।

नीलम को कौन धारण कर सकता है - यह रत्न धारण करते समय विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। इसलिए किसी योग्य ज्योतिष को जन्मपत्री का विश्लेषण करने के पश्चात् ही नीलम रत्न पहने। शौकिया न पहने, नुकसानदायक हो सकता है।

मेष लग्न के लिए शनि कर्म भाव और लाभ भाव का स्वामी माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनना चाहिए। वृष लग्न, तुला लग्न के लिए शनि योगकारक माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनने से विशेष लाभ होगा।

मिथुन लग्न के लिए अष्टमेश होने के साथ त्रिकोण का स्वामी भी होने से इस राशि के लिए शुभ माना गया है। शनि की महादशा में नीलम पहनने से लाभ होगा। स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।

कर्क लग्न और सिंह लग्न या कर्क राशि और सिंह राशि वाले जातकों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। दोनों ही लग्न या राशि के स्वामी शनि के मित्र नहीं है। पहनने की इच्छा हो तो परीक्षण के बाद ही पहनें।

कन्या लग्न- कन्या लग्न या राशि वाले शनि की महादशा में नीलम पहने तो अवश्य लाभ होगा।

वृश्चिक लग्न - वृश्चिक लग्न या राशि वालों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। ध्यान रहे यदि शनि 6,8,12 भाव में हो तो नीलम पहनने से बचें। यदि शनि पंचम, नवम, दशम एकादश भाव में हो तो शनि की महादशा में धारण कर सकते हैं।

धनु लग्न - धनु लग्न वाले जातकों को नीलम पहनने से बचना चाहिए। अगर जरूरी है तो शनि की महादशा में पीताम्बर नीलम पहन सकते हैं। मकर एवं कुम्भ लग्न या राशि वालों को नीलम हमेशा पहनना चाहिए।

मीन लग्न वाले जातकों को प्रयत्न करने पीताम्बर नीलम ही पहनें शनि यदि लग्न दूसरे, चतुर्थ, पंचम, नवम, एकादश में हो तो शनि की महादशा में नीलम पहनने से आर्थिक लाभ संभव है।

इस प्रकार नीलम चार लग्न या राशि, (वृष,तुला,मकर, कुंभ) में उत्पन्न जातक जीवन पर्यत्न तक धारण कर सकते हैं।

नीलम का प्रभाव - वैसे तो शनि देव मंद गति गामी ग्रह है। परन्तु उनका रत्न नीलम सभी रत्नों में शीघ्र प्रभाव दिखाने वाला है। यदि नीलम धारण करने के बाद मन व्याकुल हो जाए, बुरे स्वप्न आने लगे या कोई अरिष्ट हो जाए तो नीलम नहीं पहनना चाहिए।

नीलम द्वारा रोगोपचार - नीलम का मुख्य प्रभाव शरीर के संचालन पर पड़ता है। आयुर्वेद के अनुसार नीलम तिक्त रस वाला है। जो वात, पित, कफ वायु के कष्टों को दूर करता है। पागलपन की बीमारी में नीलम की भस्म उत्तम औषधि मानी गई है। मिरगी, लकवा, स्नायु विकार गंजापन से बचाव में यह लाभकारी है। आयुर्वेद के अनुसार खांसी, दमा, रक्तविकार, उल्टी बवासीर, विषमज्वर आदि में लाभदायक है।

नीलम धारण करने का तरीका - नीलम को शनि के नक्षत्र पुस्य, अनुराधा, उत्तराभाद्वपद में, धारण को अगर ये नक्षत्र न हो तो वृष तुला, मकर लग्न के नक्षत्रों में भी पहन सकते हैं। नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु में जड़वाकर पहनने से पूर्व ऊँ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप अवश्य करें। नीलम का वजन चार रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए। 5 रत्ती या 7 रत्ती का ही लेना चाहिए। जो व्यक्ति नीलम या उपरत्न न ले सकता हो वह लाजावर्त, नीला गार्नेट, नीला स्पाईनल आदि धारण कर सकते हैं।